बौद्ध धर्म की शिक्षाएं, सिद्धांत एंव संगीतियां के बारे में पढें।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएं, सिद्धांत एंव संगीतियां
सामग्री विवरण
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Table of Contents
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का मूल आधार
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अष्टागिंक मार्ग
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प्रतित्यसमुत्पाद
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पंच स्कंद
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पंचशील तथा दसशील
- आरंभिक पालि साहित्य
- महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाए एवं उनके प्रतीक
- बौद्ध संगीतियां
- बौद्ध धर्म में त्रिरत्न – बुद्ध, धम तथा संघ
- महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का मूल आधार चार आर्य सत्य :-
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- दुख
- दुःख समुदाय
- दुखनिरोध
- दुखनिरोधगामिनीप्रतिपदा अर्थात अष्टांगिक मार्ग
- बुद्ध ने दुख निवारक तीन स्कंद बताएं है:-
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- प्रज्ञा
- ज्ञान
- शील
- अष्टागिंक मार्ग
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- चौथे आर्यसत्य में अष्टांगिक मार्ग है—
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- सम्यक दृष्टि। 5. सम्यक व्यायाम।
- सम्यक संकल्प। 6. सम्यक कर्मांत।
- सम्यक वाणी। 7. सम्यक स्मृति।
- सम्यक आजीव। 8. सम्यकसमाधि।
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- अष्टागिक मार्ग को भिक्षुओं का कल्याणमित्र कहा गया।
- अष्टांगिक मार्ग को मध्यम मार्ग मज्झिम प्रतिपदा भी कहते हैं बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का स्रोत तैत्तरीय उपनिषद है
- चारों आर्य सत्य एवं अष्टांगिक मार्ग एवं प्रथम उपदेश का वर्णन धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र में मिलता है
- बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है- निर्वाण प्राप्ति। निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझजाना अथार्थ जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। निर्वाण इसी जन्ममेप्राप्त हो सकता है किंतु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है।
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- प्रतित्यसमुत्पाद:-
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- जिस प्रकार दुख समुदाय का कारण जन्म है, उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है। इसी अज्ञानरूपी चक्र को प्रतीत्यसमुत्पाद कहा जाता है।
- प्रतित्यसमुत्पाद ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षा का आधारस्तंभ है।प्रतित्यसमुत्पाद का शाब्दिक अर्थ है- प्रतित्य (किसी वस्तु के होने पर) समुत्पाद किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति।
- प्रतीत्यसमुत्पाद के 12 क्रम है जिसे द्वाद शनिदान कहा जाता है।
- बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी है वास्तव में बुद्ध ने ईश्वर के स्थान पर मानव प्रतिष्ठा पर बल दिया।
- बौद्ध धर्म अनात्मवादी है इसमेंआत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है यह पुनर्जन्म में विश्वास करता है।
- बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था एवं जातिप्रथा का विरोध किया।
- बौद्ध धर्म का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था स्त्रियों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था।
- संघ में प्रविष्ट होने को उपसंपदा कहा जाता था।
- बौद्ध धर्म का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था। संघमें चोर,हत्यारों,ऋणी व्यक्तियों,राजा के सेवक, दास तथा रोगी व्यक्तियों का प्रवेश प्रवेश वर्जित था।
- बौद्धभिक्षुओ के लिए महीने के 4 दिन अमावस्या,पूर्णिमा और दो चतुर्थी दिवस उपवास के दिन होते थे।
- बोधों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्योहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्धपूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
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- पंच स्कंद
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- रूप
- वेदना
- संस्कार
- संज्ञा
- विज्ञान
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- बुद्ध धर्म के अनुसार पांच स्कंधों का निरोध दुख का निरोध है ।
- पंचशील तथा दसशील:-
- बौद्ध धर्म में पंचशील का सिद्धांत छान्दोग्य उपनिषद् से लिया गया है। बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार एवं नैतिकता पर आधारित दसशीलो पर सर्वाधिक बल दिया जो कि निम्नलिखित हैं –
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- अहिंसा
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य
- सत्य
- मादक पदार्थों/ नशा का त्याग
- असमयभोजन का त्याग
- कोमल शैय्या का त्याग
- कंचन कामिनी का त्याग
- नृत्य संगीत का त्याग
- सुगंधित द्रवों का त्याग
- इसमें से प्रथम पांच पंचशील बौद्ध उपासक वर्ण (गृहस्थ) के लिए है एवं संपूर्ण दसशील भिक्षुओं के लिए है।
- दक्षिणी दिशा बौद्ध धर्म की पवित्रतम दिशा है।
- बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं के अनुसार स्थान कर्म – लुम्बिनी, सारनाथ ,कपिलवस्तु,कुशीनगर ,बोधगया आदि है।
- बुद्ध के जीवन से जुड़े हुए आठ स्थानों को बोध ग्रंथों में अष्टम हास्थान कहा गया है। ये है-लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, संकास्य, राजगृह व वैशाली।
- महात्मा बुद्ध के उपदेश पाली भाषा में दिए गए हैं।
- आरंभिक पालि साहित्य को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
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- सुत पिटक:- बुद्ध के उपदेशों का संकलन
- विनय पिटक:- भिक्षुसंघ के नियम
- अभिधम पिटक:- धम्मसंबधी दार्शनिक विवेचन।
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- सुत पिटक को प्रारंभिक बौद्ध धर्म का ऐनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है।
- बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातक कथाएं सुत पिटक में वर्णित है।
- शयन मुद्रामें बुद्ध की प्राचीनतम मूर्ति कुशीनगर से प्राप्त हुई है।
- प्राचीन भारतीय शिल्प में बुद्ध को रिक्त सिंहासन पर दर्शाया गया है।
- बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा की सारनाथ मूर्ति गुप्तकाल में एवं बुद्ध की खाड़ी प्रतिमा की मूर्ति कुषाण काल में प्राप्त हुई थी।
महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाएं एवं उनके प्रतीक
घटना | प्रतीक |
गर्भाधान | हाथी |
जन्म | कमल एवं सांड |
यौवन | वृषभ |
गृह त्याग | अश्व |
महाबोधि (ज्ञान) | बोधि वृक्ष |
प्रथम उपदेश | धर्म चक्र |
निर्वाण | पदचिन्ह |
मृत्यु/महापरिनिर्वाण | स्तूप |
पांच ब्राह्मण (जिन्हें प्रथम उपदेश दिया) | दाना चुगते हुए हंस |
- बौद्ध संगीतियां:-
- प्रथम बौद्ध संगीति:-
- समय – 483 ईसवी पूर्व (बुद्ध के निर्माण के तुरंत बाद)
- स्थान – राजगृह – (सप्तपर्णी गुफा)
- तत्कालीन शासक – अजातशत्रु (हर्यक वंश)
- अध्यक्ष – महाकश्यप
- उद्देश्य :- बुद्ध के उपदेशों को दो पिटको को विनयपिटक एवं सुतपिटक में संकलित किया गया।
- प्रथम संगीति में 500 भिक्षु थे, इसलिए इसे पंचशतिका का कहा गया है।
- द्वितीय बौद्ध संगीति:–
- स्थान – वैशाली
- समय – 383 ईसवी पूर्व
- अध्यक्ष – साबकमीर
- शासन काल -काला अशोक (शिशु नागवंश)
- उद्देश्य – अनुशासन को लेकर मतभेद के समाधान के लिए बौद्ध धर्म स्थाविर एवं महासधिक दो भागों में बट गया।
- इसमें 700 भिक्षुओं ने भाग लिया इसलिए इसे सप्तशतिका का कहा गया है।
3. तीसरी बौद्ध संगीति:-
- समय – 251 ईसवी
- पूर्व स्थान – पाटलिपुत्र
- शासन – अशोक(मौर्य वंश)
- अध्यक्ष – मोग्गलिपुततिस्स
- उद्देश्य – संघ भेद के विरुद्ध कठोर नियमों का प्रतिपादन करके बौद्ध धर्म को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयत्न किया गया।धर्म ग्रंथो का अंतिम रूप से संपादन किया गया तथा तीसरा पिटक अभिधम्मपिटक जोड़ा गया।
- तीसरी बौद्ध संगति का उल्लेख एकमात्र भारतीय पुस्तक सामंतपासादिका में मिलता है जो बुद्धघोष द्वारा रचित है।
- 60000 पथभ्रष्ट भिक्षुओं को इस सभा द्वारा निष्कासित किया गया।
4.चतुर्थ बौद्ध संगीति:–
- समय – प्रथम शताब्दी ईस्वी
- स्थान – कुंण्डलवन(कश्मीर)
- अध्यक्ष – वसुमित्र
- शासन – कनिष्क
- उपाध्यक्ष एवं विशेष अतिथि – अश्वघोष
- उद्देश्य – बौद्ध धर्म को दो संप्रदायों हीनयान तथा महायान में विभाजन।
- चतुर्थ बौद्ध संगति पर महासंघिको (महायान) का प्रभाव था इसमें 500 भिक्षुओं में भाग लिया था।
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आज के इस लेख में हमने आपको बौद्ध धर्म की शिक्षाएं, सिद्धान्त एंव संगीतियां के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की है। उम्मीद करते है यह लेख आपको अवश्य पसंद आया होगा ।