सौर मण्डल (Solar System) के बारे में यहां से पढें।
Table of Contents
- 1 सौर मण्डल (Solar System
- 2 सूर्य पृथ्वी से कितनी दूर है :–
- 3 सौरमंडल में कितने ग्रह होते हैं :-
- 4 पृथ्वी : पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहा जाता है ?
- 5 चंद्रमा : सबसे पहले चंद्रमा की सतह पर किसने कदम रखा ??
- 6 · यह मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं।
- 7 खगोलीय पिंडों एवं उनकी गति के संबंध में अध्ययन करने वालों को खगोल शास्त्री कहते हैं आर्यभट्ट प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री थे।
सौर मण्डल (Solar System
सूर्य, नौ ग्रह, उपग्रह तथा कुछ अन्य खगोलीय पिंड जैसे क्षुद्र ग्रह एवं उल्कापिंड मिलकर सौरमंडल का निर्माण करते हैं, इसका मुखिया सूर्य होता है।
पौराणिक रोमन कहानियों में ‘सोल’ सूर्य देवता को कहा जाता है। सौर शब्द का अर्थ है, सूर्य से संबंधित। इसलिए सूर्य के परिवार को सौरमंडल कहा जाता है।
सूर्य पृथ्वी से कितनी दूर है :–
सूर्य सौरमंडल (Solar System) के केंद्र में स्थित होता है। यह बहुत बड़ा और बहुत सारी गर्म गैसों से बना होता है। जिसका खिंचाव बल इसको सौरमंडल से बांधे रखता है। सूर्य सौरमंडल के लिए प्रकाश और ऊष्मा का एकमात्र स्रोत है। हम इसकी अत्यधिक तेज ऊष्मा को महसूस नहीं कर पाते हैं, क्योंकि यह सबसे नजदीक का तारा होने के बावजूद यह हमसे बहुत दूर है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 15,00,00,000 किलोमीटर दूर है।
प्रकाश की गति लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति/ सेकंड है। इस गति के बावजूद सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 8 मिनट का समय लगता है।
सौरमंडल में कितने ग्रह होते हैं :-
- हमारे सौरमंडल (Solar System) में आठ ग्रह हैं बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति ,शनि, यूरेनस तथा नेपच्यून।
- सौरमंडल में सभी आठ ग्रह एक निश्चित पथ पर सूर्य के चक्र लगाते हैं।
- बुध सूर्य के सबसे नजदीक है। अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने मे इसे 88 दिन लगते हैं।
- शुक्र को पृथ्वी का जुड़वा ग्रह माना जाता है क्योंकि इसका आकार एवं आकृति लगभग पृथ्वी के समान है।
पृथ्वी : पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहा जाता है ?
सूर्य से दूरी के हिसाब से पृथ्वी तीसरा ग्रह है। यह पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है। यह ध्रुवो के पास थोड़ी चपटी होती है। इसके आकार को भू- आभ कहते हैं। भू -आभ का अर्थ है- पृथ्वी के समान आकार।
- जीवन के लिए सबसे ज़्यादा अनुकूल परिस्थितियों केवल पृथ्वी पर ही पाई जाती हैं। पृथ्वी न तो अधिक गर्म है और न ही अधिक ठंडी। यहां पर पानी और वायु जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है उपस्थित है। अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है क्योंकि इसके दो सतह पानी से ढकी हुई है, इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहा जाता है।
चंद्रमा : सबसे पहले चंद्रमा की सतह पर किसने कदम रखा ??
- पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह चंद्रमा है। इसका व्यास पृथ्वी के व्यास से केवल एक चौथाई है। यह हमसे 384400 किलोमीटर दूर है।
- चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर 27 दिन में पूरा करता है।
- लगभग इतने ही समय में यह अपने अक्ष पर एक चक्कर भी पूरा करता है।
- चंद्रमा की परिस्थितियां जीवन के लिए अनुकूल नहीं है। यहां न तो पानी है और ना ही हवा।
- इसकी सतह पर पर्वत, मैदान एवं गड्ढे हैं, जो चंद्रमा के सतह पर छाया बनाते हैं। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर इसकी छाया को देखा जा सकता है।
नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति थे ,जिन्होंने 29 जुलाई 1969 को सबसे पहले चंद्रमा की सतह पर कदम रखा।
उपग्रह:-
- उपग्रह एक खगोलीय पिंड है, जो ग्रहो के चारों ओर उसी प्रकार चक्कर लगाते हैं, जिस प्रकार ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
- मानव निर्मित उपग्रह एक कृत्रिम पिंड है, यह वैज्ञानिकों के द्वारा बनाया जाता है। जिसका उपयोग ब्रह्मांड के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, पृथ्वी पर संचार माध्यम के लिए किया जाता है
- इसे रॉकेट के द्वारा अंतरिक्ष में भेजा जाता है तथा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाता है
- अंतरिक्ष में उपस्थित इनसेट, आई.आर.एस ,एडूसैट कुछ भारतीय उपग्रह है।
क्षुद्र ग्रह:-
- ग्रह, उपग्रह एवं तारों के अतिरिक्त छोटे पिंड भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इन्हीं पिंडों को क्षुद्र ग्रह कहते हैं।
· यह मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते हैं।
उल्का पिंड:-
- सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्का पिंड कहते हैं
- कभी कभी यह उल्का पिंड पृथ्वी के इतने नजदीक आ जाते हैं कि पृथ्वी पर गिरने जैसी प्रवृत्ति हो जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान वायु के साथ घर्षण होने के कारण यह गर्म होकर जल जाते हैं और फलस्वरुप चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। कभी-कभी उल्का पूरी तरह जले बिना पृथ्वी पर गिर जाता है, जिससे धरातल पर गड्ढे बन जाते हैं।
आकाश गंगा:-
- यह खुले तारों वाले आकाश में एक ओर से दूसरी ओर तक फैली चौड़ी सफेद पट्टी की तरह एक चमकदार रास्ता होता है। यह लाखों तारों का एक समूह है। यह पट्टी आकाशगंगा (मिल्की वे) है।
- हमारा सौरमंडल इसी तरह की एक आकाशगंगा का भाग है।
- आकाशगंगा करोड़ों तारों, गैसों और बादलों की एक प्रणाली है। इस प्रकार की लाखों आकाशगंगाए मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करती है।
सौरमंडल (Solar System) में पृथ्वी
खगोलीय पिंड:–
सूर्य चंद्रमा तथा वे सभी वस्तुएं जो रात के समय आसमान में चमकते हैं खगोलीयपिंड कहलाते हैं।
खगोलीय पिंडों एवं उनकी गति के संबंध में अध्ययन करने वालों को खगोल शास्त्री कहते हैं आर्यभट्ट प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री थे।
तारा :-
कुछ खगोलीय पिंड बड़े आकार वाले तथा गर्म होते हैं। यह गैसों से बने होते हैं। इनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जिसे वे बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं। इन खगोलीय पिंडों को तारा कहते हैं। सूर्य भी एक तारा है।
नक्षत्र मंडल:-
रात्रि में आसमान की ओर देखते समय हम तारों के विभिन्न समूह द्वारा बनाई गई विविध आकृतियों को देख सकते हैं, यह नक्षत्रमंडल कहलाते हैं। अर्सामेजर या बिगबियर इसी प्रकार का एक नक्षत्र मंगल है।
स्मॉल बियर बड़ी आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्र मंगल है स्मॉल बियर या सप्तऋषि।यह सात तारों का समूह है जो की एक बड़े नक्षत्र मंडल अर्सा मेजर का भाग है।
ध्रुवतारा :-
यह उत्तर दिशा को बताता है इसे उत्तरी तारा भी कहते हैं। यह आसमान में हमेशा एक स्थान पर रहता है। हम सप्त ऋषि की सहायता से ध्रुव तारे की स्थिति को जान सकते हैं।
ग्रह:-
ग्रह वे खगोलीय पिंड हैं, जिनका अपना प्रकाश और ऊष्मा नहीं होती। तारों के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। ग्रह जिसे अंग्रेजी में प्लेनेट कहते हैं ग्रीक भाषा के प्लेनेटाइ शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है परिभ्रमक अर्थात चारों ओर घूमने वाले। पृथ्वी भी एक ग्रह है जिस पर हम रहते हैं।
बृहस्पति, शनि, यूरेनस के चारों ओर छल्ले हैं यह छल्ले विभिन्न पदार्थों के असंख्य छोटे- छोटे पिंडों से बनी पटिट्या हैं। पृथ्वी से इन छल्लो को शक्तिशाली दूरबीन की सहायता से देखा जा सकता है। पूर्ण चंद्रमा वाली रात को पूर्णिमा कहा जाता है।
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हमने इस लेख के माध्यम से सौर मण्डल (Solar System) के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको यह लेख अवश्य पसंद आया होगा।