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सिंधु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता
भूमिका –
विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं की तरह सिंधु घाटी की प्राचीन भारतीय सभ्यता का उदय भी नदी घाटी में हुआ था। सिंधु नदी की तलहटी में स्थित होने के कारण इस सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता कहा जाता है । इस सभ्यता के आरंभिक काल से हड़प्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए हैं । जिससे इस सभ्यता को एक अन्य नाम हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी पुकारा जाता है । हड़प्पा सभ्यता के प्रकाश में आने से पहले भारतीय इतिहास आर्य सभ्यता से आरंभ होता था आर्य सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी । लेकिन हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी । यहां से हमें भवन, बर्तन, आभूषण आदि प्राप्त हुए हैं । हड़प्पा सभ्यता में लगभग 5000 वर्ष पहले लोग पक्के मकान में रहते थे । हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे । इस सभ्यता की नगर योजना बहुत ही उच्च कोटि की थी । उनका आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि तथा पशुपालन था
खोज – हड़प्पा सभ्यता की खोज सन 1921 ई. पू. दयाराम साहनी के द्वारा की गई थी। यहां से पक्के भवन, मुहंरे व बर्तन आदि प्राप्त किए गए । हड़प्पा पंजाब के मिण्टगुमरी जिले में स्थित है। इस सभ्यता का नामकरण, हड़पा नामक स्थान, जहाँ यह संस्कृति सबसे पहले खोजी गयी थी, के नाम से किया गया है ।
विभिन्न नाम – सिंधु घाटी सभ्यता को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस सभ्यता के आरंभिक केंद्र सिंधु नदी घाटी के क्षेत्र में मिले थे । इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से इसलिए भी जाना जाता है, क्योंकि इस सभ्यता के सर्वप्रथम चिन्ह हड़प्पा नामक स्थान से मिले। इस सभ्यता के लोग बर्तन, मूर्तियां तथा औजार बनाने के लिए कांस्य का प्रयोग करते थे इसलिए इसे कांस्ययुगीन सभ्यता भी कहा जाता है ।
विस्तार – इस संस्कृति के लगभग 1400 केंद्र प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें से 925 बस्तियां भारत में और बाकी पाकिस्तान में है । इनमें से 40 बस्तियां सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में, 110 सिंधु तथा गंगा के बीच के मैदान में एवं 250 सरस्वती नदी के क्षेत्र में स्थित है । इनमें से कुछ गुजरात, राजस्थान इत्यादि क्षेत्र में स्थित है । परंतु इनमें से विकसित हड़प्पा स्थलों की संख्या 220 है। इन सभी स्थानों से कच्चे तथा पक्के मकान, सुव्यवस्थित नालिया, समकोण पर काटती सडकें, मुहरें, मोटे तथा लाल मिट्टी के अलंकृत बर्तन की मूर्तियां, मनुष्यों के हस्तिपिंजर आदि प्राप्त हुए हैं ।
हड़प्पा सभ्यता का काल – हड़प्पा सभ्यता लगभग 5000 ईसा पूर्व फली – फूली थी । अधिकांश विद्वानों के अनुसार यह सभ्यता 2500 से 1750 ईसा पूर्व मानते हैं। कार्बन डेटिंग के अनुसार इस सभ्यता को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
- आरंभिक काल (3500 ईसा पूर्व -2600 ईसा पूर्व)
- विकसित काल (2600 – 1800 ईसा पूर्व)
- उत्तर हड़प्पा काल (1800 ईसा पूर्व से बाद का काल) ।
सिंधु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं–
- नगरीकरण – हड़प्पा सभ्यता में नगरों का बहुत विकास हुआ, जिसे नगर क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। नगरों को योजनानुसार बसाया गया था । इनकी सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई, सड़के, किले, नालियों की सुव्यवस्था, अन्न के गोदाम, स्नानाघर और नगरों के चारों ओर सुरक्षित दीवार इत्यादि थी। इसके अलावा हड़प्पा संस्कृति के नगरों में कुशल कारीगर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते थे। हड़प्पा, मोहनजोदाड़ो, रंगपुरी, लोथल, कालीबंगा, मित्ताथल, आलमगीरपुर इतिहास सभ्यता के प्रमुख नगर थे। इसके अतिरिक्त नगर नदी व मुहानो तथा व्यापारिक मार्ग पर स्थापित थे।
- सामाजिक जीवन –
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के सामाजिक जीवन की विशेषताएं इस प्रकार है:-
- परिवार – हड़प्पा सभ्यता के लोगों के समाज कr मुख्य इकाई परिवार थी । उस समय परिवार संयुक्त होते थे। उस समय के विशाल भवनों को देख यही अनुमान लगाया है कि यहां बड़े परिवार रहते थे। प्रत्येक परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र- पुत्री आदि रहते थे। हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त बहुल संख्या में स्त्रियों की मूर्तियों के आधार पर हम यह अनुमान लगाया गया है कि यह समाज मातृ-सत्तात्मक था। इससे भाव है कि समाज में स्त्रियों का प्रमुख स्थान था ।
- सामाजिक वर्गीकरण – हड़प्पा सभ्यता के नगर नियोजन को देखकर ऐसा लगता है कि प्रत्येक नगर में एक तरफ अमीर तथा दूसरी तरफ गरीब वर्ग रहता था । अमीरों के दो -तीन मंजिला मकान बने होते थे । वहीं दूसरी ओर जन साधारण वर्ग के एक मंजिले छोटे – छोटे मकान बने होते थे। नगर के बाहर मज़दूरों की बस्तियों के व्यवसाय मिले हैं ।
- खान-पान भोजन (Diet ) – हड़प्पा सभ्यता के लोग विभिन्न प्रकार का भोजन करते थे। ये लोग खाने के बहुत शौकीन थे। उनका मुख्य भोजन गेहूं, जौ और चावल था। इसके अतीत में मटर, फलियां, अनेक प्रकार की डालें और नींबू का प्रयोग भी करते थे। वह दूध, दही, मक्खन, घी और मसाले का भी सेवन करते थे। वे भेड़, बकरी, गाय, सूअर, हिरण, मुर्गी और मछली का मांस भी खाते थे। इस प्रकार सिंधु निवासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे।
- वस्त्र (Dress ) –इस सभ्यता के लोग किस प्रकार के वस्त्र पहनते थे यह सब मूर्तियों की वेशभूषा से अनुमान लगाया गया है। हड़प्पा सभ्यता के लोग सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। खुदाई में कुछ तकली प्राप्त हुए जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि वहां के लोग सूट काटकर कपड़ा पहनते थे। पुरुष धोती का प्रयोग करते थे तथा स्त्री शरीर के ऊपरी भाग को ढकने के लिए साल तथा चादर धारण करती थी जो पंखों की तरह उठे हुए होते थे। सिंधु घाटी के लोग वस्त्रों को रंग कर भी पहनते थे। अमीर वर्ग के लोग बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे, जबकि जनसाधारण लोग सादा वस्त्र धारण करते थे ।
- आभूषण तथा श्रृंगार – हड़प्पा सभ्यता में स्त्री-पुरुष दोनों को आभूषण पहनने का बहुत शौक था। उस समय आभूषण में चूड़ियां, कर्णफूल, झुमके, नथ, पायॅजेब, बालियां, अंगूठियां, हंसली, कड़े, माला तथा ताबीज होते थे। अमीर वर्ग के लोग सोने, चांदी, हाथी दांत तथा रतन के बने आभूषण पहनते थे, जबकि जनसाधारण व मजदूर लोग तांबे तथा कांसे के आभूषण पहनते थे। हड़प्पा संस्कृति के विभिन्न नगरों की खुदाई में कुछ सिंगारदानियां भी प्राप्त हुई हैं, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि सिंगार करने का शौक स्त्री-पुरुष दोनों को था। स्त्री पुरुष दोनों अपने बालों को विभिन्न प्रकार से संवारते थे। वे लकड़ी की बनी कंघी और कांसे के बने दर्पण का प्रयोग करते थे।
- मनोरंजन – हड़प्पा संस्कृति के लोग विभिन्न साधनों के द्वारा अपना मनोरंजन करते थे। वे भाले, तलवार और चाकू की सहायता से खरगोश, हिरण और चीता का शिकार करते थे। सिंधु घाटी के लोग शतरंज खेलने की बहुत शौकीन थे। कुछ लोग ढोल बजाकर, गीत गाकर तथा पशु एवं पक्षियों की लड़ाईयां कराकर भी अपना मनोरंजन करते थे। बच्चों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी, मानव आकृति, गाड़ियां, चीटियां तथा झुनझुने आदि नामक प्रकार के खिलौने तैयार किए जाते थे।
- 3. धार्मिक जीवन (Religions Life) –
हड़प्पा संस्कृति से प्राप्त लिपियां को पूर्ण रूप से पढ़ने में अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन खुदाई में मिली मूर्तियां, चित्रों, भवनों आदि के आधार पर उनके धार्मिक जीवन के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है।
- मूर्ति – पूजा में विभिन्न स्थानों से देवी देवताओं, लिंग तथा योनी इत्यादि की मूर्तियां प्राप्त हुई है। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल इत्यादि स्थानों की खुदाई से पत्थर के लिंग तथा सीप की योनियां भारी मात्रा में मिली है, जिससे अनुमान लगाया गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे। खुदाई में मातृदेवी की अनेक मूर्तियां, मोर व ताबीज प्राप्त हुए हैं जिससे अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा सभ्यता का समाज मातृ-सत्तात्मक था। जहां पर मातृदेवी को शक्ति का प्रतीक समझा जाता था ।
- पशु पूजा– हड़प्पा संस्कृति के लोगों में मूर्ति पूजा के अतिरिक्त, पशु पूजा भी अत्यधिक प्रचलित थी। पशुओं में कुबड़ा बैल, हिरण, गधा, भैसा, गाय व नाग इत्यादि पशुओं की पूजा की जाती थी।
- शिव की पूजा – जिस प्रकार आज हिंदू धर्म में शिव को पशुपति एवं त्रिशूल धारी के रूप में पूजा जाता है, उसी प्रकार हड़प्पा संस्कृति में भी शिव को इसी रूप में पूजा जाता था। खुदाई से हमें एक योगी की मूर्ति प्राप्त हुई है जिसके तीन मुंह है। वह योग की मुद्रा में बैठा हुआ है। उसके चारों ओर हिरण, सांड, गेैंडा, हाथी व सिंह जैसे पशु बैठे हुए हैं, जिससे अनुमान लगाया गया है कि यह शिव की मूर्ति है।
- वृक्ष पूजा –हड़प्पा सभ्यता के लोग वृक्षों की पूजा करते थे। वे वृक्षों को देवी देवताओं का आवास मानकर उनकी पूजा करते थे। हड़प्पा संस्कृति के लोग पीपल की पूजा करते थे। पीपल के अतिरिक्त यहां नीम की भी पूजा की जाती थी ।
- जादू टोना तथा बलियों में विश्वास– हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से प्राप्त अनेक ताबीजों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग जादू टोनों तथा भूत प्रेतों में विश्वास रखते थे। इसके अतिरिक्त कुछ मुहरों पर मनुष्यों द्वारा पशुओं की बलि देने के चित्र अंकित मिले हैं। लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि भी देते थे।
- 4. धार्मिक संस्कार –
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग विभिन्न प्रकार के धार्मिक संस्कार करते थे। वह अपने मर्तकों का संस्कार तीन वीधियों से करते थे।
- पूर्ण समाधिकरण– सिंधु घाटी के लोग शवों को भूमि में गाड़ देते थे तथा उनके साथ आभूषण, श्रृंगार, प्रसाधन की वस्तुएं व बर्तन इत्यादि रख देते थे।
- आंशिक समाधिकरण – आंशिक समाधिकरण में पहले शवों को पशु पक्षियों के खाने के लिए खुली हवा में छोड़ दिया जाता था। जब पशु पक्षी मृत के शरीर को खा जाते थे तो उनकी अस्थियों को उठाकर जमीन में दबा दिया जाता था।
- दाह संस्कार– दाह संस्कार विधि में सिंधु घाटी के लोग शवों को जला देते थे।
5. आर्थिक जीवन –
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन बहुत समृद्ध था। यह बात निम्नलिखित तथ्यों से प्रमाणित होती है –
- कृषि (Agriculture) – हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । इसका कारण यह था कि यह प्रदेश बहुत ही उर्वरक था तथा सिंचाई के पानी के लिए यहां कोई कमी नहीं थी। हड़प्पा निवासी खेत जोतने के लिए हलों का प्रयोग करते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग विभिन्न प्रकार के अनाज, फल तथा सब्जियां उगाते थे। उनकी मुख्य फसलें गेहूं और जौ थी। वह कपास का भी उत्पादन करते थे। कपास के प्रयोग में कपड़ा कपास से कपड़ा तैयार किया जाता था। फलों के रूप में खजूर, नारियल, तरबूज व खिला अनार आदि का उत्पादन करते थे।
- पशुपालन Cattle Rearing – हड़प्पा सभ्यता के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। उनके बर्तनों तथा मुहरों पर बने चित्रों, खिलौनों तथा अस्थि अवशेषों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, हाथी, कुत्ता और गधे आदि पशुओं को पालते थे। इन पशुओं से वे दूध, दही, मक्खन, मास तथा बोझ ढोने के लिए प्रयोग करते थे। कुत्ते की सहायता से शिकार किया जाता था तथा घरों की रखवाली की जाती थी।
- व्यापार – हड़प्पा सभ्यता में आंतरिक तथा विदेशी दोनों प्रकार का व्यापार किया जाता था। आंतरिक व्यापार के लिए नगरों में चोड़ी सड़कें होती थी। गधों तथा बैलों की सहायता से माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता था। आंतरिक व्यापार में अनाज, पशु, कपड़ा, फल- सब्जियां, खिलौने तथा प्रतिदिन प्रयोग की वस्तुएं एक एक स्थान से दूसरे स्थान पर बेची जाती थी। व्यापार वस्तु- विनिमय के आधार पर किया जाता था। विदेशी व्यापार मेसोपोटामिया, बलूचिस्तान, ईरान व मध्य एशिया आदि देशों के साथ किया जाता था। विदेशी व्यापार नदी तथा समुद्र के रास्ते से नावों द्वारा किया जाता था। खजूर, अनाज, हाथीदांत तथा खिलौने विदेशों में निर्यात किए जाते थे।
- उद्योग – हड़प्पा सभ्यता में विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योग स्थापित किए गए थे। सूती वस्त्र उद्योग बहुत विकसित स्थिति में था। हड़प्पा सभ्यता में भारी मात्रा में कपड़ा बनाया जाता था। मिट्टी की ईंटे बनाकर उन्हें आग में पकाया जाता था, जिनका प्रयोग भवन निर्माण में किया जाता था। कुछ लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करते थे। इन उद्योगों को देखते हुए कुछ लोग आभूषण बनाने, हाथीदांत का काम करने, मूर्ति बनाने, मछलियां पकड़ने, चिकित्सा तथा भवनों का निर्माण करने आदि का भी कार्य करते थे ।
- तोल तथा माप (Weights and Measures)– हड़प्पा सभ्यता के लोगों में व्यापार की सुविधा के लिए तोल तथा माप प्रणाली प्रचलित थी। हड़प्पा की खुदाई के दौरान हमें बड़ी मात्रा में बाट प्राप्त हुए हैं, यह विभिन्न आकारों तथा वजन वाले होते थे। ये सभी बाट 1 2 4 8 16 32 64 के अनुपात में होते थे। बाटो के अतिरिक्त हमें हड़प्पा की खुदाई में धातु के तराजू तथा पैमाने भी मिले हैं। पैमाने का प्रयोग वस्तुओं को मापने के लिए किया जाता था।
6. राजनीतिक जीवन (Political Life)
- प्रशासनिक स्वरूप – हड़प्पा सभ्यता के प्रशासनिक स्वरूप के बारे में कहना थोड़ा कठिन है। हंटर महोदय ने यहां के शासन को जनतंत्रात्मक शासन कहा है। मैके के अनुसार प्रतिनिधि शासक शासन का प्रधान होता था।
- राजनीतिक एकता – हड़प्पा सभ्यता एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। विभिन्न स्थलों पर एक जैसी भवन निर्माण योजना, सड़कों एंव गलियों का प्रबंध, रोशनी तथा सफाई के प्रबंध तथा माप-तोल के एक जैसे बाटों का पाए जाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां राजनीतिक एकता थी। दूसरा, इससे संकेत मिलता है कि उस समय की शासन व्यवस्था काफी सुदृढ़ रही होगी।
- अस्त्र-शास्त्र –हड़प्पा सभ्यता के लोग शांति प्रिय थे। विभिन्न स्थानों की खुदाई में हमें छोटी तलवारें, कुल्हाड़िया, बर्छे तथा चाकू प्राप्त हुए हैं। इनमें से ज्यादातर औजार तांबे और कांसे के बने हुए थे। हड़प्पा सभ्यता में हमें लोहे का कोई भी शस्त्र प्राप्त नहीं हुआ है। इससे अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा वासियों को लोहे का कोई ज्ञान नहीं था।
7. सांस्कृतिक जीवन –
- शिल्प कला –शिल्पकारियों में मुख्यतः मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना आदि सम्मिलित है। विभिन्न स्थानों की खुदाई से पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग शिल्प कला का प्रयोग व्यावसायिक तौर पर करते थे। कुम्हार चाक की सहायता से मिट्टी के बर्तन बनाते थे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो व कालीबंगा इत्यादि नगरों से बहुत ही सुंदर मिट्टी के बर्तन मिले हैं। जिनमें मटके, सुरैया, प्लेट और कटोरी महत्वपूर्ण है। हड़प्पा सभ्यता में स्वर्णकार आभूषण बनाने की कला में निपुण थे। उस समय आभूषण सोना, चांदी, हाथीदांत, तांबे तथा पीतल के बनाए जाते थे। सोने से मुद्रा तथा मुहरें भी बनाई जाते थे।
- मूर्ति कला – खुदाई में काफी संख्या में पत्थर तथा धातु की मूर्तियां मिली है, जिससे हड़प्पा सभ्यता की मूर्ति कला के विषय में रुचि का पता चलता है। मोहनजोदड़ो से एक नर्तकी की कांसे की मूर्ति मिली है। हड़प्पा से दो मानव की मूर्तियां प्राप्त हुई है, जो लाल पत्थर की बनी हुई हैं। इन मूर्तियों के सिर, हाथ तथा पैरों को जोड़ने के लिए बर्मा से छेद किए गए है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों की खुदाई में काफी मात्रा में तांबे तथा कांस्य की मूर्तियां प्राप्त हुई है। पत्थर के लिंग तथा योनि के छल्लों की मुर्तियां भी काफी संख्या में प्राप्त हुई है। इन सभी मुर्तियों में उस समय की कला देखने को मिलती है।
- चित्रकला- सिंधु घाटी के लोग पशु, पक्षी, वृक्ष, बैल, त्रिभुज व चतुर्भुज आदि के चित्र बनाते थे। इस संस्कृति के लोग विभिन्न बर्तनों जैसे कटोरी, प्लेट, मटके आदि पर भी चित्रकारी करते थे।
- भवन निर्माण कला – सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की भवन निर्माण कला बहुत ही उच्च कोटि की थी। उस समय नगर एक निश्चित योजना के आधार पर बनाए जाते थे। हड़प्पा के लोगों के मकान पक्की ईंटो से बने हुए मिले हैं जिनमें बड़े-बड़े दरवाजे, खिड़कियां, रसोई-घर व स्नानघर आदि भी मिले हैं। सभी नगरों की सड़क एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। नगरों में नालियों की सुंदर व्यवस्था की गई थी।
- शिक्षा तथा दर्शन – हड़प्पा सभ्यता के लोगों की लिपि चित्राक्षर थी। हड़प्पा के नगरों से 375 से 400 के बीच चित्राक्षर प्राप्त हुए हैं। उस समय लिपि में वर्णमाला न होकर, ध्वनि लिपि तथा भाषा लिपि का मिला हुआ रूप था। हड़प्पा लिपि दाएं से बाएं ओर लिखी जाती थी। मातृ देवी की मूर्ति तथा अन्य अवशेषों को देखकर अनुमान लगाया गया है कि सिंधु सभ्यता के लोग दार्शनिक विचारों के थे।
8. निष्कर्ष –
- हड़प्पा सभ्यता के लोगों का रहन-सहन उच्च कोटि का था। हड़प्पा सभ्यता एक शहरी सभ्यता थी। यहाँ नगरों में नालियों को सुव्यवस्थित तरीके से बनाया गया था। हड़प्पा सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था। स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता था। इस सभ्यता के लोगों ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्षेत्र मे. बहुत उन्नति की।
हमने सिंधु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की है, उम्मीद करते हैं कि आपको अवश्य ही पसंद आया होगा।
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