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प्रस्तावना
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी के पिता कठियावाड़ के छोटे से रियासत (पोरबंदर) के दिवान थे। महात्मा गांधी सात वर्ष के थे जब उनका परिवार राजकोट (जो काठियावाड़ में एक अन्य राज्य था) चला गया जहॉं उनके पिता करमचंद गांधी दीवान बने। पोरबंदर उस समय बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत के तहत एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ में कई छोटे राज्यों में से एक था। गांधी जी की मां पुतलीबाई एक साध्वी चरित्र, कोमल और भक्त महिला थी। आस्था में लीन माता और उस क्षेत्र के जैन धर्म के परंपराओं के कारण गाँधी जी के जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, जैसे की आत्मा की शुद्धि के लिए उपवास करना आदि।
महात्मा गांधी का विवाह और बच्चे
महात्मा गांधी जी का विवाह कस्तूरबा से करा दिया गया था, जब गांधी जी मात्र 13 वर्ष के थे और कस्तूरबा 14 वर्ष की थीं। उनका विवाह परंपरागत रूप से बाल विवाह था, लेकिन यह संबंध आजीवन प्रेम और सहयोग पर आधारित रहा। कस्तूरबा गांधी ने न केवल गांधी जी के जीवन – संगिनी के रूप में, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
गांधी जी और कस्तूरबा के चार पुत्र थे: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, और देवदास। हरिलाल, सबसे बड़े पुत्र, ने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया और पिता के विचारों से असहमति जताई। मणिलाल और रामदास ने गांधीजी के आदर्शों का पालन किया और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। देवदास, सबसे छोटे पुत्र, ने भी अपने माता-पिता के सिद्धांतों को जीवन में अपनाया। गांधीजी और कस्तूरबा का संबंध प्रेम, आदर और सहयोग का प्रतीक था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
गांधी जी की शिक्षा
गांधी जी ने पोरबंदर में पढ़ाई की थी और फिर माध्यमिक परीक्षा के लिए राजकोट गए थे। वह अपनी वकालत की आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड चले गए। गांधी जी ने 1891 में अपनी वकालत की शिक्षा पूरी की। लेकिन किसी कारण वश उन्हें अपने कानूनी केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने रंग के चलते हो रहे भेद-भाव को महसूस किया और उसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाने की सोची। वहां के श्वेत लोग काले रंग के लोगों पर ज़ुल्म करते थे, और उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष
गांधी जी का जीवन दक्षिण अफ्रीका में एक निर्णायक मोड़ पर पहुँचा। 1893 में, वे एक साल के अनुबंध पर कानूनी सलाहकार के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ उन्हें नस्लीय भेदभाव और भारतीय समुदाय के खिलाफ हो रहे अत्याचारों का सामना करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में उनके 21 वर्षों के प्रवास ने उन्हें सत्याग्रह (सत्य के प्रति आग्रह) और अहिंसा (अहिंसक प्रतिरोध) के सिद्धांतों को विकसित करने का अवसर दिया। उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।
भारत वापसी और स्वतंत्रता संग्राम
1915 में गांधी जी भारत लौटे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी। गांधी जी का मानना था कि स्वराज (स्व-शासन) केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधारों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रमुख आंदोलनों का नेतृत्व
- असहयोग आंदोलन (1920-22): गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीयों को सरकारी संस्थाओं, विदेशी वस्त्रों और उपाधियों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित करना था। इस आंदोलन ने पूरे देश में ब्रिटिश विरोध की लहर पैदा की।
- नमक सत्याग्रह (1930): गांधीजी ने दांडी मार्च का नेतृत्व किया, जो 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से शुरू होकर 6 अप्रैल 1930 को दांडी गांव पर समाप्त हुआ। इस मार्च का उद्देश्य नमक कानून का विरोध करना था, जो ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर लगाया था। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): 1942 में, गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की घोषणा की, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन से तत्काल स्वतंत्रता प्राप्त करना था। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को चरम पर पहुंचा दिया और ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
गांधी जी के सिद्धांत
गांधी जी का जीवन और उनके सिद्धांत सत्य, अहिंसा और सादा जीवन पर आधारित थे। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने हमेशा गरीबों, दलितों और हाशिये पर खड़े लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। गांधी जी ने स्वदेशी आंदोलन का भी समर्थन किया, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना शामिल था।
“आप वह बदलाव बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।“ – यह उद्धरण हमें अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है और यह दर्शाता है कि समाज में परिवर्तन की शुरुआत स्वयं से होती है।
“अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।“ – गांधीजी के इस उद्धरण में अहिंसा के महत्व को स्पष्ट किया गया है। यह हमें सिखाता है कि हिंसा का जवाब कभी भी हिंसा नहीं हो सकता, बल्कि अहिंसा ही सच्ची शक्ति है।
“सत्य एक है, मार्ग कई हैं।“ – यह उद्धरण धार्मिक सहिष्णुता और विविधता के प्रति गांधी जी के दृष्टिकोण को प्रकट करता है। यह बताता है कि हर धर्म और हर विचारधारा सत्य की खोज का एक तरीका है।
“विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए, जब विश्वास अंधा हो जाता है तो मर जाता है।“ – यह उद्धरण हमें अंधविश्वास और कट्टरता से दूर रहने की सलाह देता है और हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
“जीवन का उद्देश्य केवल अस्तित्व नहीं है, बल्कि उन सबका भला करना है जो हमारे संपर्क में आते हैं।“ – इस उद्धरण में गांधीजी का मानवीय दृष्टिकोण झलकता है, जिसमें वे सभी प्राणियों के कल्याण की बात करते हैं।
महात्मा गांधी को “बापू” की उपाधि
यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है कि “बापू” की उपाधि महात्मा गांधी को सबसे पहले किसने और कब दी थी। कई अलग-अलग मत और किस्से प्रचलित हैं:
दक्षिण अफ्रीका: कुछ लोगों का मानना है कि यह उपाधि 1914 में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय द्वारा उन्हें दी गई थी। “बापू” का अर्थ गुजराती में “पिता” होता है, और यह सम्मान गांधी जी के प्रति उनके स्नेह और सम्मान को दर्शाता था।
रवींद्रनाथटैगोर: एक अन्य प्रचलित मत यह है कि रवींद्रनाथटैगोर ने 1915 में गांधी जी को “महात्मा” की उपाधि दी थी। इसके बाद, “बापू” का प्रयोग भी उनके लिए सामान्य हो गया।
सुभाष चंद्र बोस: यह भी कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस ने 1944 में गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के निधन के बाद उन्हें “बापू” की उपाधि दी थी। उन्होंने सिंगापुर रेडियो के माध्यम से एक प्रसारण में यह सम्मानजनक शब्द प्रयोग किया था।
यह स्पष्ट नहीं है कि “बापू” की उपाधि महात्मा गांधी को सबसे पहले किसने दी थी, लेकिन यह निश्चित रूप से 1910 के दशक में दक्षिण अफ्रीका और भारत में उनके प्रति सम्मान और स्नेह का प्रतीक बन गया था। यह उपाधि उनके पिता-समान मार्गदर्शन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को दर्शाती है।
धार्मिक सद्भावना
गांधी जी ने धार्मिक सद्भावना और एकता पर जोर दिया। उन्होंने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया और धार्मिक हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि सभी धर्म एक ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं और हमें अपने मतभेदों को भुलाकर एकजुट होना चाहिए।
गांधी जी की विरासत
महात्मा गांधी का योगदान न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अमूल्य है। उनके सिद्धांत और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी जी की हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके सिद्धांत और विचार दुनिया भर में मानवता और शांति के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
महात्मा गांधी शांति पुरस्कार
भारत सरकार सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं एवं नागरिकों को वार्षिक महात्मा गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करती है। गैर भारतीय पुरस्कार विजेताओं में नेल्सनमंडेला प्रमुख हैं, जो दक्षिण अफ्रिका में नस्लीय भेदभाव और अलगाव उन्मूलन करने के लिए संघर्ष के नेता रहे हैं। गांधी जी को कभी भी नोबल पुरस्कार नहीं मिला हालाकि उनका नामांकन 1937 से 1948 के बीच पाँच बार हुआ था। जब 1989 में चौदहवें दलाई लामा को यह पुरस्कार दिया गया तब समिति के अध्यक्ष ने इसे “महात्मा गांधी की स्मृति में श्रद्धांजलि” कहा था। महात्मा गांधी को फिल्मों, साहित्य और थिएटर में चित्रित किया गया है
निष्कर्ष
महात्मा गांधी एक ऐसे महानायक थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों और विचारों के माध्यम से न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि पूरी दुनिया को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कैसे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सफलता प्राप्त की जा सकती है। गांधी जी की विरासत हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेगी और उनके विचार हमें सही मार्ग दिखाते रहेंगे।
उम्मीद करते हैं आपको Hindi Essay on Mahatma Gandhi अवश्य ही पसंद आया होगा।
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