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परिचय
आधुनिक समाज में सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक वातावरण दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है। धर्म के प्रति आस्था कम होती जा रही है तथा अपने स्वार्थ हेतु शक्ति तथा ज्ञान का अनुचित प्रयोग हो रहा है। कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अनुशासनहीनता व गुंडागर्दी प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस परिप्रेक्ष्य में मूल्य शिक्षा का महत्व और आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गई है।
मूल्य शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व
आधुनिक समय में मूल्य शिक्षा का महत्व और आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ गई है जिसे निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –
1. बालक के सर्वांगीण विकास के लिए
औपचारिक आधुनिक शिक्षा केवल बौद्धिक विकास करती है। जबकि वर्तमान में हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो बालकों का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में भी समुचित विकास कर सके। सर्वांगीण विकास के लिए मूल्य शिक्षा अनिवार्य है जो बच्चों को न केवल बौद्धिक रूप से बल्कि उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समृद्ध बनाती है।
2. सामाजिक मूल्यों के विकास के लिए
लोकतांत्रिक समाज में सामाजिक मूल्यों का काफी महत्व होता है। पदवी व अवसर के प्रति समानता, धन का समान बंटवारा आज के समय कुछ ऐसे सामाजिक मूल्य है जिनका विकास अवश्य ही किया जाना चाहिए। मूल्य शिक्षा से समाज में समानता, न्याय और भाईचारे की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।
3. मानवतावादी दृष्टिकोण के विकास के लिए
आज भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में मानवतावादी दृष्टिकोण का अभाव है। और समय की मांग है कि हम मानवतावादी दृष्टिकोण को विकसित करने का प्रयास करें। इसलिए सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत इस तरह के मूल्यों की शिक्षा देना बहुत जरूरी है। इससे लोगों में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, सहयोग और करुणा का विकास होता है।
4. पर्यावरण के संरक्षण के लिए
वन कटाव, भूमि कटाव, पंजीकृत तकनीक द्वारा औद्योगिकरण व कृषि उत्पादन पर बल देने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण हेतु मूल्य शिक्षा देना अति आवश्यक है। इससे लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर उसके संरक्षण के लिए सक्रिय कदम उठा सकते हैं।
5. छोटे परिवार का महत्व
जनसंख्या की सीमा निर्धारित करने से राष्ट्र का जीवन उत्तम व सुविधाजनक बन सकता है। इसीलिए तत्कालीन परिस्थतियों में छोटे परिवार का महत्व बढ़ गया है। लोगों में इस बात की समझ मूल्य शिक्षा देने से उत्पन्न की जा सकती है। इससे जनसंख्या नियंत्रण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
6. प्रजातांत्रिक मूल्यों के विकास के लिए
इस तरह की शिक्षा में अपने देश के नागरिकों में प्रेम, सहानुभूति, सहयोग तथा दया जैसी भावनाओं के विकास को प्रोत्साहन देना व बालकों में इन मूल्यों को विकसित करने का प्रयास शामिल होना चाहिए। इससे लोकतांत्रिक समाज का निर्माण होता है जहां हर नागरिक का योगदान महत्वपूर्ण होता है।
7. संस्कृति की सुरक्षा के लिए
आज विभिन्न तरह की परिस्थितियों ने हमारी संस्कृति को इतना प्रदूषित कर दिया है की सच्चाई, ईमानदारी, भलाई व कर्तव्यनिष्ठता जैसे सांस्कृतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। मूल्य शिक्षा के माध्यम से इन सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः स्थापित किया जा सकता है।
8. धर्मनिरपेक्ष समाज के विकास के लिए
धर्मनिरपेक्षता स्वतंत्रता का मुख्य सामाजिक मूल्य है। सभी धर्मों के प्रति आदर, पूजा करने की स्वतंत्रता व नागरिक कार्यों की व्यवस्था करते समय धर्म को बीच में न लाना धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की श्रेणी में आता है। मूल्य शिक्षा से धर्मनिरपेक्ष समाज का विकास होता है जहां सभी धर्मों का सम्मान होता है और धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता।
निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि मूल्यों की शिक्षा द्वारा नागरिकों को जागृत करना हमारा परम कर्तव्य है। व्यक्तियों को न केवल हमें मूल्यों के विषय में बताना है अपितु उनके महत्व से भी उनको अवगत कराना जरूरी है। मूल्य शिक्षा से ही हम एक स्वस्थ, समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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