Indian Lok Sabha

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लोकसभा

लोकसभा, भारतीय संसद का निचला सदन है, जिसे ‘हाउस ऑफ़ द पीपल’ के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोकतंत्र में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि सीधे चुनावों के माध्यम से चुने जाते हैं। लोकसभा का मुख्य कार्य कानून बनाना है, जिसमें वित्तीय मामलों को छोड़कर सभी विषय शामिल हैं। यह सरकार बनाने और हटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। यह लेख लोकसभा के गठन, संरचना, कार्य, और इसकी प्रक्रियाओं पर विस्तृत प्रकाश डालेगा।

भारतीय लोकसभा का इतिहास

भारतीय लोकसभा (Indian Lok Sabha) का इतिहास स्वतंत्र भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संसद का निचला सदन है और सीधे जनता द्वारा चुना जाता है। यहाँ भारतीय लोकसभा के इतिहास के प्रमुख बिंदु प्रस्तुत किए गए हैं –

 1. प्रारंभिक दौ

    •  स्वतंत्रता और संविधान सभा 1947 – 15 अगस्त 1947 को भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्रता के बाद, संविधान सभा ने भारत का संविधान तैयार करने का कार्य शुरू किया। यह संविधान सभा 1946 में गठित की गई थी और इसके सदस्य भारतीय जनता के प्रतिनिधि थे।
    • भारतीय गणराज्य और संविधान 1950 – 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ और भारत एक गणराज्य बना। संविधान ने भारतीय संसद को द्वि-सदनीय प्रणाली (बाईकैमरल सिस्टम) के रूप में स्थापित किया, जिसमें लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (उच्च सदन) शामिल हैं।

2. लोकसभा का गठन

लोकसभा का गठन भारतीय संविधान के तहत 1950 में हुआ था। इसका पहला सत्र 13 मई, 1952 को आयोजित हुआ था। भारत के संविधान द्वारा आवंटित लोकसभा की अधिकतम सदस्यता 552 है (शुरुआत में, यह 500 थी)। वर्तमान में, सदन में 543 सीटें हैं, जो अधिकतम 543 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव से बनती हैं। लोकसभा का गठन हर पांच वर्ष में चुनाव के माध्यम से होता है। अगर सरकार अपना बहुमत खो देती है, तो लोकसभा को भंग किया जा सकता है और नए चुनाव कराए जा सकते हैं।

भारत सरकार की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 अतिरिक्त सदस्यों को भी नामित किया जाता था, जिसे 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा जनवरी 2020 में समाप्त कर दिया गया।

3. प्रमुख घटनाएँ

    • आपातकाल (1975-77) – भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण दौर, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू किया। इस अवधि में, लोकसभा की भूमिका और सरकार की कार्यप्रणाली पर व्यापक बहस हुई।
    • मंडल आयोग, 1989 – 1980 के दशक के अंत में और 1990 के दशक की शुरुआत में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गईं, जिसने अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण का प्रावधान किया। यह लोकसभा के महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक था।
    • लिबरलाइजेशन (1991) – 1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को अपनाया गया, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार लाया। यह कदम नरसिम्हा राव की सरकार और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लिया गया।

कार्य और शक्तियाँ

लोकसभा का मुख्य कार्य कानून बनाना है। इसके अलावा, यह सरकार के कार्यों की निगरानी, बजट पारित करना, और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करना जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी करती है। लोकसभा की प्रमुख शक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. विधायी शक्तियाँ: लोकसभा विभिन्न प्रकार के विधेयकों पर चर्चा करती है और उन्हें पारित करती है। बजट, वित्त विधेयक और धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं।

  2. वित्तीय शक्तियाँ: लोकसभा वित्तीय मामलों में सर्वोच्च है। सरकार को वार्षिक बजट प्रस्तुत करना होता है, जिसे लोकसभा की मंजूरी मिलनी चाहिए। वित्तीय विधेयक विशेष रूप से लोकसभा में ही पेश किए जाते हैं और इस पर अंतिम निर्णय लोकसभा द्वारा ही लिया जाता है।

  3. नियंत्रण और जांच: लोकसभा विभिन्न मुद्दों पर सरकार के कार्यों की जांच और समीक्षा करती है। यह मंत्रियों से प्रश्न पूछने और विभिन्न समितियों के माध्यम से जांच करने का अधिकार रखती है, जैसे कि सार्वजनिक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति, स्थायी समिति आदि। ये समितियाँ विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत अध्ययन करती हैं और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं।

  4. अविश्वास प्रस्ताव: यदि लोकसभा में किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो वह सरकार गिर जाती है।

लोकसभा के प्रमुख पदाधिकारी

लोकसभा के प्रमुख पदाधिकारी स्पीकर (अध्यक्ष) और डिप्टी स्पीकर (उपाध्यक्ष) होते हैं। लोकसभा का संचालन अध्यक्ष (स्पीकर) द्वारा किया जाता है, जो सदन के निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है। अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने, अनुशासन बनाए रखने और विवादों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) भी निर्वाचित सदस्यों में से चुना जाता है और अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनके कर्तव्यों का निर्वाह करता है।

भारतीय लोकसभा (Indian Lok Sabha) सदस्य की चयन प्रक्रिया / निर्वाचन प्रक्रिया

लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व निभाता है। भारत में आम चुनाव हर पांच साल में होते हैं, जिसमें भारतीय नागरिक मतदान करते हैं और अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं।

  1. सीधे चुनाव – लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
  2. निर्वाचन क्षेत्र – भारत को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। हर निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य का चुनाव होता है।
  3. प्रथम-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली – इस प्रणाली में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से सबसे अधिक वोट प्राप्त करने वाला उम्मीदवार निर्वाचित होता है।
  4. चुनाव आयोग की देखरेख – चुनाव भारतीय चुनाव आयोग द्वारा संचालित और नियंत्रित होते हैं।

लोकसभा की समितियां

लोकसभा में विभिन्न प्रकार की समितियां होती हैं, जो विशिष्ट विषयों पर गहन अध्ययन और समीक्षा करती हैं। इनमें स्थायी समितियां, वित्तीय समितियां और अन्य विशेष समितियां शामिल होती हैं। इन समितियों की रिपोर्ट्स और सुझाव सदन के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं।

 कार्यकाल

  1. लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है।
  2. विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग किया जा सकता है।
  3. आपातकाल के दौरान संसद के एक कानून द्वारा लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है।

सदस्य की योग्यता

  1. उम्मीदवार की न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए।
  2. उम्मीदवार भारतीय नागरिक होना चाहिए।
  3. उम्मीदवार मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए।
  4. उम्मीदवार पर कोई आपराधिक मामला नहीं चल रहा होना चाहिए।
  5. उम्मीदवार के लिए 10वीं पास होना अनिवार्य नहीं है।
  6. उम्मीदवार को निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल करना होता है।
  7. उम्मीदवार को मानसिक रूप से स्वस्थ और दिवालिया नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, उम्मीदवार को किसी आपराधिक आरोप में दोषी नहीं ठहराया गया होना चाहिए।
राज्यवार लोकसभा सीटों की संख्या

भारतीय संविधान के अनुसार, लोकसभा की सीटें विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या के आधार पर आवंटित की जाती हैं। यहां राज्यवार लोकसभा सीटों की संख्या दी गई है:

  1. आंध्र प्रदेश – 25
  2. अरुणाचल प्रदेश – 2
  3. असम – 14
  4. बिहार – 40
  5. छत्तीसगढ़ – 11
  6. गोवा – 2
  7. गुजरात – 26
  8. हरियाणा – 10
  9. हिमाचल प्रदेश – 4
  10. झारखंड – 14
  11. कर्नाटक – 28
  12. केरल – 20
  13.  मध्य प्रदेश – 29
  14. महाराष्ट्र – 48
  15. मणिपुर – 2
  16. मेघालय – 2
  17. मिजोरम – 1
  18. नागालैंड – 1
  19. ओडिशा – 21
  20. पंजाब – 13
  21. राजस्थान – 25
  22. सिक्किम – 1
  23. तमिलनाडु – 39
  24. तेलंगाना – 17
  25. त्रिपुरा – 2
  26. उत्तर प्रदेश – 80
  27. उत्तराखंड – 5
  28. पश्चिम बंगाल – 42
केंद्र शासित प्रदेशवार लोकसभा सीटें
  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह – 1
  2. चंडीगढ़ – 1
  3. दादर और नागर हवेली और दमन और दीव – 2
  4. लक्षद्वीप – 1
  5. दिल्ली – 7
  6. पुडुचेरी – 1
  7. जम्मू और कश्मीर – 5
  8. लद्दाख – 1
लोकसभा का महत्व

लोकसभा भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह सदन जनता की आवाज को सरकार तक पहुंचाने का कार्य करता है और सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। लोकसभा में विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों के माध्यम से विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व होता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ किया जाता है।

वर्तमान दौर

2024 में, लोकसभा की 17वीं सभा चल रही है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) वर्तमान में सत्तारूढ़ दल है, और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। विपक्ष में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य दल शामिल हैं, जो विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं।

  • लोकसभा चुनाव और सत्र – लोकसभा के चुनाव हर पांच साल में आयोजित किए जाते हैं। 2019 में 17वीं लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बहुमत प्राप्त किया और नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
  • विविधता और प्रतिनिधित्व – लोकसभा में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं, जो देश की विविधता को प्रतिबिंबित करते हैं। महिलाओं और विभिन्न जाति एवं धर्म के प्रतिनिधियों का समावेश भी इसमें होता है।
निष्कर्ष

लोकसभा भारतीय लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है, जो देश के कानून निर्माण और नीतिगत निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सीधे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का सदन है, जो जनता की आवाज को संसद में पहुंचाता है और देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने में योगदान देता है।

भारतीय लोकसभा (Indian Lok Sabha) का इतिहास भारतीय लोकतंत्र के विकास और सुदृढ़ीकरण का प्रतीक है। यह देश की सबसे महत्वपूर्ण विधायिका है, जो जनता की आवाज़ को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है और भारतीय गणराज्य की स्थिरता और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

हमने भारतीय लोकसभा (Indian Lok Sabha) के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान  करने की कोशिश की है, उम्मीद करते हैं आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।

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