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पौधों को जानिए
अध्याय– 7
अगर आप बाहर निकलकर अपने चारों ओर के पौधों का प्रेक्षण करेंगे तो पाएंगे कि कुछ पौधे छोटे हैं और कुछ विशालकाय, जबकि कुछ धरती पर हरे धब्बों की तरह दिखाई देते हैं। कुछ पौधों की पत्तियाँ हरी होती हैं जबकि कुछ की पत्तियाँ लालिमायुक्त होती हैं। कुछ पौधों के फूल बड़े एवं लाल हैं, कुछ नीले तथा कुछ पौधों में पुष्प ही नहीं होते। आइए, हम पौधे के विभिन्न भागों के विषय में जानें इससे हमें विभिन्न प्रकार के पौधों के बीच अंतर समझने में सहायता मिलेगी।
शाक, झाड़ी एवं वृक्ष
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- शाक– हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं, ये सामान्यतः छोटे होते हैं और अक्सर इनमें कई शाखाएं नहीं होतीं।
- झाड़ी – कुछ पौधों में शाखाएं तने के आधार के समीप से निकलती है। तना कठोर होता है परंतु अधिक मोटा नहीं होता। उन्हें झाड़ी कहते हैं।
- वृक्ष – कुछ पौधे बहुत ऊंचे होते हैं तथा इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे भूरे होते हैं। इनमें शाखाएं भूमि से अधिक ऊँचाई पर तने के उपरी भाग से निकलती हैं। इन्हें वृक्ष कहते हैं।
- विसर्पी लता – कमजोर तने वाले पौधे सीधे खड़े नहीं हो सकते और ये भूमि पर फैल जाते हैं। इन्हें विसर्पी लता कहते हैं।
- आरोही – जबकि कुछ पौधे आस-पास के ढाँचे की सहायता से ऊपर चढ़ जाते हैं। ऐसे पौधे आरोही कहलाते हैं। ये शाक, झाड़ी और पेड़ों से भिन्न होते हैं।
क्रियाकलाप 1
पौधों के तने एवं शाखाओं को ध्यानपूर्वक देखेंगे तो पाएंगे कि
- कुछ पौधे आप से कम लंबे हैं और
- कुछ की लंबाई लगभग आपके बराबर है, तथा
- कुछ आपसे बहुत अधिक लंबे हैं।
तने को स्पर्श करके आप यह जान सकते हैं कि तना कोमल है अथवा कठोर।अगर आप पाते हैं कि तना कोमल है तो आप इसको मोड़ कर देख सकते हैं लेकिन ध्यान रखना है कि वह टूटे ना। लंबे पौधों के तने मोटे होते हैं। आप लंबे पौधों के तने की मोटाई को मापने का प्रयास कर सकते हैं।
हमें यह भी जानना चाहिए की शाखाएं भूमि के पास तने के आधार से अथवा कुछ ऊँचाई के बाद निकलती है ।
तना
क्रियाकलाप – 2
आवश्यक सामग्री : एक गिलास, जल, लाल स्याही, शाकीय पौधा तथा एक ब्लेड।
गिलास को एक तिहाई जल से भरेंगे। जल में लाल स्याही की कुछ बूंदें डाल देंगे। शाक के तने को आधार से काटकर गिलास में रखेंगे, अगले दिन इन शाखाओं का अवलोकन करेंगे।
तना क्या कार्य करता है?
हम पाएंगे कि इस शाक के कुछ भाग लाल नजर आ रहें हैं। इस क्रियाकलाप में हमने देखा कि जल तने में ऊपर की ओर चढ़ता है अर्थात् तना जल का संवहन करता है। लाल स्याही की भाँति जल में विलीन खनिज, जल के साथ तने में ऊपर पहुँच जाते हैं। जल तथा खनिज तने की पतली नलिकाओं द्वारा पत्तियों तथा पौधे के अन्य भागों तक पहुँचते हैं।
पत्ती
अपने आस-पास के पौधों की पत्तियों को देखकर अपनी नोटबुक में उनके चित्र बनाइए। और पता लगाईए कि क्या इन सभी की आकृति, आकार एवं रंग एक जैसे हैं।
यह तने से किस प्रकार जुड़ी हुई हैं। पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ी होती है, पर्णवृत कहलाता है। पत्ती के चपटे हरे भाग को फलक कहते हैं। आप स्वंय अपने आस-पास के पौधों की पत्तियों में इन भागों की पहचान करके पता लगा सकते हैं कि क्या सभी पत्तियों में पर्णवृत होता है।
पत्ती के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आइए उसकी छाप लेंते हैं। यदि आप सोचते हैं कि पत्ती विशेष छाप नहीं छोड़ सकती तो यह क्रियाकलाप आपको पुनर्विचार पर मजबूर कर देगा।
क्रियाकलाप 3
एक पत्ती को एक सफेद कागज़ अथवा अपनी कॉपी के पन्ने के नीचे रखिए। इसे एक ही स्थान पर दबाकर पकड़ कर रखें। अपनी पेंसिल को तिरछा पकड़िए तथा इसकी नोक से कागज़ के उस भाग को जिसके नीचे पत्ती है, धीरे-धीरे रगड़िए। आपको कुछ रेखाओं के साथ छाप दिखाई देगी। यह छाप पत्ती की तरह ही है।
पत्ती की इन रेखित संरचनाओं को शिरा कहते हैं। आपको पत्ती के मध्य में एक मोटी शिरा दिखाई देती है, इसे मध्य शिरा कहते हैं। पत्तियों पर शिराओं द्वारा बनाए गए डिजाइन को शिरा-विन्यास कहते हैं। यदि यह डिजाइन मध्य शिरा के दोनों ओर जाल जैसा है, तो यह शिरा-विन्यास, जालिका रूपी कहलाता है।आपने देखा होगा कि घास की पत्तियों में यह शिराएँ एक दूसरे के समांतर होती हैं। ऐसे शिरा-विन्यास को समांतर शिरा-विन्यास कहते हैं।
आइए, क्रियाकलाप 4 से अब यह जानने का प्रयास करें कि पत्तियाँ क्या कार्य करती हैं?
क्रियाकलाप 4
आवश्यक सामग्रीः शाक (पौधा), पॉलिथीन के दो पारदर्शी थैले तथा कुछ धागा।
इस क्रियाकलाप को दिन के समय करना चाहिए जब धूप खिली हो। इस क्रियाकलाप के लिए आपको स्वस्थ, भली-भाँति सिंचित और धूप में रखे हुए पौधे को लेना चाहिए। किसी पौधे की पत्ती वाली शाखा को एक पॉलिथीन की थैली से ढककर धागे से बाँध दीजिए।
पत्तियाँ क्या कार्य करती हैं –
दूसरे पॉलीथीन की खाली थैली पर भी धागा बाँध कर धूप में रख दीजिए। कुछ घंटों के बाद पॉलिथीन की थैली के आंतरिक पृष्ठ को ध्यानपूर्वक देखिए। आप पाएंगे कि किसी एक थैली के अंदर जल की बूँदें दिखाई दे रहीं हैं। क्या आप बता सकते हैं कि यह बूंदें कहाँ से आई। (क्रियाकलाप के बाद पॉलिथीन की थैली को हटाना मत भूलना)। जल की यह बूंदें पत्ती से जल वाष्प के रूप में निकलीं है। इस क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। इस प्रक्रम के द्वारा पौधे बड़ी मात्रा में जल को वायुमंडल में छोड़ते हैं।
पत्तियों का और भी कार्य है। आइए इसका अध्ययन क्रियाकलाप 5 में करें।
क्रियाकलाप 5
आवश्यक सामग्री : पत्ती, स्प्रिट, बीकर, परखनली, बर्नर, जल, प्लेट एवं आयोडीन विलयन।
परखनली में एक पत्ती रखिए तथा उसमें पर्याप्त मात्रा में स्प्रिट डालें जिससे पत्ती उसमें पूर्णतः डूबी रहे। अब इस परखनली को जल से आधे भरे बीकर में रखिए। बीकर को उस समय तक गर्म करते रहें जब तक पत्ती से हरा रंग पूर्णतः बाहर नहीं निकल जाता। अब पत्ती को परखनली से सावधानीपूर्वक बाहर निकालकर जल से भलीभाँति धोएँ। इसे प्लेट में रखकर आयोडीन विलयन की कुछ बूँदें डालिए।
आप अपने प्रेक्षण की तुलना अध्याय 2 में खाद्य पदार्थों में विभिन्न पोषकों की उपस्थिति का परीक्षण के समय किए गए प्रेक्षण से कीजिए। क्या इसका अर्थ है कि पत्ती में मंड है?
हमने अध्याय 2 में देखा था कि कच्चे आलू में भी मंड उपस्थित होता है। आलू में यह मंड पौधे के अन्य भाग से आकर एकत्रित हो जाता है। परंतु, पत्तियाँ प्रकाश और हरे रंग के एक पदार्थ की उपस्थिति में अपना भोजन बनाती हैं। इस प्रक्रिया में जल एवं कार्बन डाइआक्साइड का उपयोग करती हैं। इस प्रक्रम को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रम में ऑक्सीजन निष्कासित होती है। पत्तियों द्वारा संश्लेषित भोजन अंततः पौधे के विभिन्न भागों में मंडल के रूप में संग्रहित ही जाता है।
हम कैसे कह सकते हैं कि पत्ती ने ही मंड का संश्लेषण किया है तथा यह पौधे के किसी और भाग से यहाँ से नहीं पहुँचा है? इसे जानने के लिए उपरोक्त व क्रियाकलाप को कुछ दूसरी विधि से दोहरा सकते हैं।
पौधेयुक्त एक गमले को एक अथवा दो दिनों के लिए अंधेरे कमरे में रखिए। इस पौधे की एक पत्ती के आंशिक भाग को दोनों ओर से काले कागज से ढक दीजिए। अब इस पौधे को पूरे दिन के लिए सूर्य के प्रकाश में रख दीजिए। अब आंशिक रूप से काले कागज़ से ढकी पत्ती को तोड़कर इसमें मंड का परीक्षण कीजिए।
क्या इस प्रयोग से आपको यह समझने में सहायता मिली कि पत्ती का वह भाग जो सूर्य के प्रकाश में था, उसमें मंड उपस्थित है, परंतु काले कागज़ से ढके भाग में नहीं। इसका अर्थ है कि पत्ती सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ही मंड का संश्लेषण करती है।
अब तक हमने जो क्रियाकलाप किए उनसे हमने देखा कि तना पत्ती को जल पहुँचाता है। पत्ती जल का उपयोग अपना भोजन बनाने के लिए करती है, पत्तियों से जल की कुछ मात्रा का ह्रास वाष्पोत्सर्जन द्वारा होता है। तने और पत्ती को जल जडोंसे प्राप्त होता है। यह कार्य जड़ें करती हैं।
जड़
पौधे का कौन-सा भाग मिट्टी के अंदर है। आइए निम्न क्रियाकलापों के द्वारा पौधे के इस भाग के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
क्रियाकलाप 6
आवश्यक सामग्री : दो गमले, कुछ मिट्टी, खुरपी, ब्लेड अथवा कैंची एवं जल। यह क्रियाकलाप 4-5 विद्यार्थियों के समूह में करना चाहिए।
बगीचे से किसी खरपतवार के एक-जैसे दो पौधे सावधानी से उखाड़िए। ध्यान रहे, कि उनकी जड़ों को कोई क्षति न हो। खरपतवार के एक पौधे को एक गमले में मिट्टी डालकर लगा दीजिए। दूसरे पौधे की जड़ों को काट दीजिए। अब इसे दूसरे गमले में लगा दीजिए। इनमें नियमित रूप से जल दीजिए।
एक सप्ताह पश्चात इनका प्रेक्षण कीजिए। क्या दोनों पौधे स्वस्थ हैं ?
दोनों पौधों में नियमित रूप से जल दिया गया, परंतु एक की जड़ नहीं थी।
जड़ का एक अन्य कार्य जानने के लिए आइए एक और क्रियाकलाप करें।
क्रियाकलाप 7
आवश्यक सामग्री: मक्का और चने के बीज, रुई, कटोरी तथा जल।
दो कटोरियाँ लीजिए। इनमें भीगी हुई रुई रखिए। एक कटोरी में चने के 3-4 बीज और दूसरी में मक्का के दाने रखिए। जल डालकर रुई को हमेशा नम रखिए जब तक कि बीज अंकुरित होकर नवोद्भिदनहीं बन जाएँ। एक सप्ताह बाद उन्हें खींचकर रुई से बाहर निकालने का प्रयास कीजिए। क्या नवोद्भिद सरलता से रुई से बाहर खिंच आता है ? क्यों ?
क्रियाकलाप 6 में हमने देखा कि हम पौधों को भूमि से खींचकर आसानी से नहीं निकाल पाते। उन्हें मिट्टी खोदकर निकालना पड़ता है। जड़ें पौधे को मिट्टी में मजबूती से जमाए (जकड़े) रखती हैं। इन्हें मिट्टी में पौधे का स्थिरक कहा जाता है।
जड़ें भी विविध प्रकार की होती है। आइए इसका पता लगाएँ।
क्रियाकलाप 9
खुले मैदान में जाइए जहाँ बहुत से खरपतवार उग रहे हों। कुछ खरपतवार पौधों की मिट्टी खोद कर निकालिए और जड़ों से मिट्टी धोकर अलग कर उनका निरीक्षण कीजिए। एकत्र किए गए खरपतवार पौधों को उनकी जड़ के आधार पर दो समूहों में छाँटिए।
- मूसला जड़ – कुछ पौधों में दो तरह की जड़ें होती हैं । इसकी मुख्य जड़ को मूसला जड़ कहते हैं तथा छोटी जड़ों को पार्श्व जड़ कहते हैं।
- झकड़ा जड़ अथवा रेशेदार जड़ – जिन पौधों की जड़ों में कोई मुख्य जड़ नहीं होती , सभी जड़ें एक समान दिखाई देती हैं। इन्हें झकड़ा जड़ अथवा रेशेदार जड़ कहते हैं।
हमने देखा कि जड़ें मिट्टी से जल का अवशोषण करती हैं तथा तना, जल एवं खनिज को पत्ती एवं पौधे के अन्य भागों तक पहुँचाता है। पत्तियाँ भोजन संश्लेषित करती हैं। यह भोजन तने से होकर पौधे के विभिन्न भागों में संग्रहित हो जाता है। इस प्रकार की कुछ जड़ों जैसे- गाजर, मूली, शकरकंद, शलजम एवं टेपियोका आदि को हम खाते हैं। हम पौधे के अन्य भागों को भी खाते हैं जहाँ भोजन भंडारित रहता है।
पुष्प
क्रियाकलाप 10
आवश्यक सामग्री – एक पुष्प कलिका तथा निम्न में से किसी पौधे के दो पुष्प : धतूरा, गुड़हल, गुलाब, सरसों, बैंगन, भिंडी, गुलमोहर; एक ब्लेड, स्लाइड अथवा कागज, आवर्धक लेंस एवं जल।
खिले हुए पुष्प का प्रमुख भाग इसकी पंखुड़ियाँ हैं। विभिन्न पुष्पों की पंखुड़ियाँ अलग-अलग रंगों की होती हैं।
आपके विचार में कलिका में यह पंखुड़ियाँ कहाँ बंद थीं ? कलीं का प्रमुख भाग छोटी पत्ती की भाँति दिखाई देता है। इन्हें बाह्यदल कहते हैं पुष्प के बाह्यदल एवं पंखुड़ियों का भलीभांति अवलोकन कीजिए।
आप पुष्प के आंतरिक भाग को स्पष्ट रूप से कब देख सकेंगे, जब पंखुड़ी जुड़ी हों अथवा जब वे स्वतंत्र हों? उदाहरण के लिए धतूरे एवं अन्य घंटाकार पुष्प की पंखुड़ियों को लंबाई में काटकर आप पुष्प के आंतरिक अंगों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं
घंटाकार पुष्प
पुष्प के आंतरिक भागों को स्पष्ट रूप से देखने के लिए बाह्य दल एवं पंखुड़ियों को हटा दीजिए तथा अपने पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर को पहचानिए।
विभिन्न पुष्पों में पाए जाने वाले विविध प्रकार के पुंकेसर दिखाए गए हैं। क्या आप पुंकेसर के दोनों भागों को पहचान सकते हैं? अपने पुष्प में पुंकेसर की संख्या ज्ञात कीजिए।
पुष्प के केंद्र में स्थित भाग को स्त्रीकेसर कहते हैं। यदि आप इसे पूरी तरह से नहीं देख पा रहे हों, तो पुंकेसर हटा दीजिए।
क्रियाकलाप 11
आइए, अब एक पुष्प के अंडाशय की संरचना का अध्ययन करें । यह स्त्रीकेसर का सबसे निचला एवं फूला हुआ भाग है। इसकी आंतरिक संरचना के अध्ययन के लिए इसे काटना पड़ता है।
अलग-अलग पुष्पों से दो अंडाशय लीजिए। आप अंडाशय को एक स्लाइड अथवा प्लेट पर रखकर उसे दो प्रकार से काट सकते हैं।
अंडाशय की काट को सूखने से बचाने के लिए प्रत्येक काट (सेक्शन) पर जल की बूंद रखिए।
आवर्धक लेंस की सहायता से अंडाशय की आंतरिक रचना का अध्ययन कीजिए। आपको अंडाशय में छोटी-छोटी गोल संरचनाएँ दिखाई देती हैं। इन्हें बीजांड कहते हैं।
क्या अब आप इस बात से सहमत हैं कि सभी पुष्पों की संरचना सदैव एक जैसी नहीं होती? विभिन्न पुष्पों में बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर की संख्या में अंतर हो सकता है। कुछ पुष्पों में इनमें से कुछ भाग अनुपस्थित भी हो सकते हैं।
सारांश
- सामान्यतः पौधों का वर्गीकरण उनकी ऊँचाई, तने एवं शाखाओं के आधार पर शाक, झाड़ी एवं वृक्ष में किया जाता है।
- तने पर पत्तियाँ, पुष्प तथा फल होता है।
- सामान्यतः पत्ती में पर्णवृंत और फलक होते हैं।
- पत्ती में शिराओं का प्रतिरूप शिरा-विन्यास कहलाता है। यह जालिका रूपी अथवा समांतर हो सकता हैं।
- पत्तियाँ वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा जलवाष्प को वायु में निष्कासित करती हैं।
- हरी पत्तियाँ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु एवं जल से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन बनाती हैं।
- जड़े मिट्टी से जल एवं खनिज पदार्थों का अवशोषण करती हैं तथा पौधों को मिट्टी में दृढ़ता से जमाए रखती हैं।
- जड़ मुख्यतः दो प्रकार की होती है – मूसला जड़ एवं रेशेदार जड़।
- जालिका रुपी शिरा-विन्यास युक्त पत्तियों वाले पौधों की जड़ें मूसला जड़ होती हैं जबकि समांतर शिरा-विन्यास युक्त पत्तियों वाले पौधों की जड़े रेशेदार होती हैं।
- तने द्वारा जड़ों से पत्तियों (और दूसरे भागों) को जल और पत्तियों से भोजन, पौधों के अन्य भागों तक पहुँचता है।
- पुष्प के विभिन्न भाग हैं- बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर।
हमने ncert class 6 science chapter 7 notes in hindi के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की कोशिश की है, उम्मीद करते हैं आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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