Price Elasticity of Demand

मांग की मूल्य लोच क्या है?

मांग की मूल्य लोच (Price Elasticity of Demand) एक महत्वपूर्ण आर्थिक अवधारणा है जो यह निर्धारित करती है कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी मांग में कितना परिवर्तन आएगा। सरल शब्दों में, यह मापता है कि यदि किसी वस्तु की कीमत बदलती है, तो उपभोक्ता उस वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेंगे। मांग की मूल्य लोच यह बताती है कि कुछ वस्तुओं की कीमत में मामूली परिवर्तन से उनकी मांग में बड़ा बदलाव हो सकता है, जिसे लोचदार मांग कहते हैं, जबकि कुछ अन्य वस्तुओं की मांग में थोड़ा या कोई बदलाव नहीं होता, जिसे अलोचदार मांग कहते हैं। यह अवधारणा उपभोक्ताओं, निर्माताओं, और सरकार के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें निर्णय लेने में सहायता करती है।

मांग की मूल्य लोच के प्रकार (Types of Price Elasticity of Demand)

1.लोचदार मांग (Elastic Demand)

जब किसी वस्तु की कीमत में थोड़ी सी भी वृद्धि या कमी होती है और उसकी मांग में बड़ा परिवर्तन आता है, तो इसे लोचदार मांग कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि उपभोक्ता कीमत में छोटे बदलावों पर भी बहुत अधिक मात्रा में उस वस्तु की खरीदारी को बढ़ा या घटा सकते हैं। उदाहरण के लिए, लक्जरी वस्तुएं जैसे महंगे गहने या गैर-आवश्यक वस्तुएं जिनकी कीमत बढ़ने पर लोग उन्हें खरीदना कम कर देते हैं और कीमत घटने पर ज्यादा खरीदते हैं।

2. अलोचदार मांग (Inelastic Demand)

जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है लेकिन उसकी मांग में बहुत कम या कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो इसे अलोचदार मांग कहा जाता है। इसका मतलब है कि उपभोक्ता कीमत में बदलाव के बावजूद उस वस्तु को लगभग वही मात्रा में खरीदते रहते हैं। उदाहरण के लिए, आवश्यक वस्तुएं जैसे पेट्रोल, दवाइयाँ और कुछ खाद्य पदार्थ, जिनकी मांग कीमत बढ़ने पर भी स्थिर रहती है क्योंकि इनके बिना जीवन यापन मुश्किल है।

मांग की मूल्य लोच की गणना (Calculation of Price Elasticity of Demand)

मांग की मूल्य लोच की गणना करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है :-

                                   % मांग में परिवर्तन

मांग की मूल्य लोच  =   ——————-   

                                   % कीमत में परिवर्तन

गणना की प्रक्रिया (Process of Calculation)

  1. मांग में प्रतिशत परिवर्तन

पहले मांग में हुए परिवर्तन की गणना की जाती है। इसे निकालने के लिए पुरानी और नई मांग के बीच के अंतर को पुरानी मांग से विभाजित कर 100 से गुणा किया जाता है।

                                        नई मांग − पुरानी मांग

         % मांग में परिवर्तन  =      ———————–    ×100

                                                         पुरानी मांग

2. कीमत में प्रतिशत परिवर्तन

इसी प्रकार, कीमत में हुए परिवर्तन की गणना की जाती है। इसे निकालने के लिए पुरानी और नई कीमत के बीच के अंतर को पुरानी कीमत से विभाजित कर उसे 100 से गुणा किया जाता है।

                                                  (नई कीमत − पुरानी कीमत)

% कीमत में परिवर्तन = ——————————-   ×100                   

                                                    पुरानी कीमत

  1. लोच की गणना

अंत में, मांग में प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु की कीमत 10% बढ़ती है और उसकी मांग 20% घटती है, तो मांग की मूल्य लोच होगी:-

                                                −20 %

मांग की मूल्य लोच = ————    = − 2

                                       10%  

यह परिणाम दर्शाता है कि मांग लोचदार है, क्योंकि कीमत में 1% परिवर्तन पर मांग में 2% परिवर्तन हो रहा है।

मांग की मूल्य लोच के प्रभाव(Effects of Price Elasticity of Demand)

मांग की मूल्य लोच के प्रभाव विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर दिखाई देते हैं, जो उपभोक्ताओं, निर्माताओं और नीति निर्धारकों के निर्णयों को प्रभावित करते हैं। इसके प्रभाव निम्नलिखित हैं:-

1. उपभोक्ता व्यवहार पर प्रभाव

लोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, यदि कीमतें बढ़ती हैं, तो उपभोक्ता उनकी खरीदारी कम कर देते हैं और अन्य विकल्पों की ओर रुख करते हैं। इसके विपरीत, अलोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, कीमत बढ़ने पर भी उपभोक्ता उनकी खरीदारी जारी रखते हैं क्योंकि उनके पास कम विकल्प होते हैं। उदाहरण के लिए, पेट्रोल की कीमतें बढ़ने पर भी लोग उसे खरीदना जारी रखते हैं क्योंकि यह एक आवश्यक वस्तु है।

2. निर्माता और विक्रेता पर प्रभाव

निर्माताओं और विक्रेताओं के लिए, मांग की मूल्य लोच समझना महत्वपूर्ण है ताकि वे मूल्य निर्धारण और उत्पादन के बारे में सही निर्णय ले सकें। लोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, कीमतें बढ़ाने से कुल राजस्व घट सकता है, क्योंकि इससे मांग में बड़ी गिरावट हो सकती है। दूसरी ओर, अलोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, कीमतें बढ़ाने से कुल राजस्व बढ़ सकता है क्योंकि मांग में केवल मामूली गिरावट होगी।

3. सरकारी नीतियों पर प्रभाव

सरकार मांग की मूल्य लोच को ध्यान में रखकर कर नीति, सब्सिडी, और अन्य आर्थिक नीतियाँ बनाती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु की मांग लोचदार है, तो उस पर उच्च कर लगाने से सरकारी राजस्व घट सकता है, क्योंकि लोग उसकी खरीदारी कम कर देंगे। वहीं, अलोचदार मांग वाली वस्तुओं पर कर लगाने से राजस्व बढ़ सकता है।

4. कुल राजस्व पर प्रभाव

कुल राजस्व (Total Revenue) पर भी मांग की मूल्य लोच का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। लोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, कीमत में वृद्धि से कुल राजस्व घट सकता है क्योंकि मांग में बड़ी गिरावट आ जाती है। इसके विपरीत, अलोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, कीमत में वृद्धि से कुल राजस्व बढ़ सकता है क्योंकि मांग में कमी नगण्य होती है।

5. मार्केटिंग और विज्ञापन पर प्रभाव

मार्केटिंग और विज्ञापन रणनीतियाँ भी मांग की मूल्य लोच पर निर्भर करती हैं। लोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए अधिक प्रचार और छूट की आवश्यकता हो सकती है। अलोचदार मांग वाली वस्तुओं के लिए, इतने व्यापक प्रचार की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि उपभोक्ताओं की निर्भरता अधिक होती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मांग की मूल्य लोच एक महत्वपूर्ण आर्थिक अवधारणा है जो विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने में मदद करती है और यह समझने में मदद करती है कि बाजार में कीमत और मांग के बीच का संबंध क्या है।  इसे समझकर उपभोक्ता, निर्माता, विक्रेता, और सरकार सभी अपने-अपने हितों में सही निर्णय ले सकते हैं, जिससे बाजार में संतुलन बना रहता है और आर्थिक गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलती हैं।

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