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INTRODUCTION
राज्य सभा के सभापति का पद भारतीय संसद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी भूमिका, कर्तव्य और प्रावधान न केवल सदन की कार्यवाही को सुचारू बनाते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की गुणवत्ता और न्यायपूर्णता को भी सुनिश्चित करते हैं। सभापति के कार्यों और निर्णयों का सीधा प्रभाव संसद की कार्यक्षमता और जनता के विश्वास पर पड़ता है, जो उन्हें भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाता है।
सभापति की मुख्य जिम्मेदारियों में सदन की कार्यवाही को सुव्यवस्थित ढंग से चलाना, विभिन्न मुद्दों पर चर्चा और बहस को संयमित करना, तथा सदस्यों के बीच शिष्टाचार और अनुशासन बनाए रखना शामिल है। उनके निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं और सदन के कामकाज के प्रभावी संचालन के लिए अनिवार्य माने जाते हैं।
राज्यसभा के सभापति की नियुक्ति
राज्य सभा के सभापति (Rajya Sabha Chairman) का पद भारत के उपराष्ट्रपति के साथ जुड़ा हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 64 के तहत, उपराष्ट्रपति को राज्य सभा का पदेन सभापति नियुक्त किया जाता है। इस प्रकार, राज्य सभा के सभापति के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया सीधे उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित होती है।
उपराष्ट्रपति का चुनाव
राज्यसभा का सभापति भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं। उपराष्ट्रपति का चुनाव भारत के राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही होता है, जिसमें लोक सभा और राज्य सभा के सभी सदस्य भाग लेते हैं। संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा, जो राज्य सभा का पदेन सभापति भी होता है। उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। यह चुनाव संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत संपन्न होता है।
- निर्वाचन प्रक्रिया
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- उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) के सदस्य शामिल होते हैं।
- यह चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) द्वारा होता है, जिसमें सदस्यों द्वारा वरीयता के आधार पर मतदान किया जाता है।
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योग्यता
- उपराष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार को भारतीय नागरिक होना चाहिए।
- उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
- उम्मीदवार को राज्य सभा का सदस्य होने की पात्रता होनी चाहिए, अर्थात् वह व्यक्ति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से राज्य सभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
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अवधि
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- उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
- उपराष्ट्रपति दोबारा चुने जा सकते हैं और उनका पद अवकाश, मृत्यु या त्यागपत्र के द्वारा रिक्त हो सकता है।
संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 63 :- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 63 यह प्रावधान करता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। उपराष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन सभापति होते हैं।
- अनुच्छेद 64 :- यह उपबंध करता है कि उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान, राज्य सभा के सभापति के रूप में कार्य करेंगे।
- अनुच्छेद 66 :- इस अनुच्छेद में उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का वर्णन है, जिसमें लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य भाग लेते हैं।
भूमिका और कर्तव्य
राज्य सभा के सभापति के कर्तव्य और भूमिका व्यापक और महत्वपूर्ण होते हैं:-
- सत्र संचालन :- सभापति का मुख्य कर्तव्य राज्य सभा की बैठकों का संचालन करना है। वे सुनिश्चित करते हैं कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले और सदस्यों द्वारा समय का सदुपयोग हो।
- वोटिंग अधिकार :- सभापति सामान्यतः राज्य सभा की कार्यवाहियों में मतदान नहीं करते हैं। हालांकि, यदि किसी मुद्दे पर मतों की बराबरी हो जाती है, तो उनके पास निर्णायक वोट डालने का अधिकार होता है।
- विधायी प्रक्रिया :- सभापति विधेयकों पर चर्चा और मतदान की प्रक्रिया का संचालन करते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी विधायी कार्य संविधान और सदन के नियमों के अनुसार हो।
- अनुशासन बनाए रखना :- सभापति सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाते हैं। वे सदस्यों को नियमों के उल्लंघन पर चेतावनी दे सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सदन से निलंबित भी कर सकते हैं।
- विशेषाधिकार :-सभापति के पास विशेषाधिकार होता है कि वे राज्य सभा की विभिन्न समितियों के सदस्यों की नियुक्ति करें और उनके कार्य को निर्देशित करें। वे समितियों की रिपोर्ट और सिफारिशों को सदन में प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संवैधानिक भूमिका
राज्य सभा के सभापति की संवैधानिक भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी निष्पक्षता और निर्णय की गुणवत्ता सदन की कार्यवाही को प्रभावी और न्यायपूर्ण बनाने में सहायक होती है। वे एक तटस्थ अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं, जो राजनीति से ऊपर उठकर सदन की गरिमा और मर्यादा की रक्षा करते हैं।
निष्कर्ष
राज्य सभा के सभापति का पद भारतीय संसद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी भूमिका, कर्तव्य और प्रावधान न केवल सदन की कार्यवाही को सुचारू बनाते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की गुणवत्ता और न्यायपूर्णता को भी सुनिश्चित करते हैं। उनकी निष्पक्षता और निर्णय की गुणवत्ता सदन की कार्यवाही के प्रभावी और न्यायपूर्ण संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। सभापति के कार्यों और निर्णयों का सीधा प्रभाव संसद की कार्यक्षमता और जनता के विश्वास पर पड़ता है, जो उन्हें भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाता है।
हमने Rajya Sabha Chairman के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की कोशिश की है, उम्मीद करते हैं आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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