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Table of Contents
- 1 राज्यसभा (What is Rajya Sabha)
- 2 सदस्यों की चयन प्रक्रिया (SELECTION PROCESS)
- 3 राज्यसभा सदस्यों के कार्यकाल की अवधि (Terms/period)
- 4 राज्य सभा सदस्य की योग्यता (Eligibility)
- 5 राज्यसभा की सीटें (Rajya Sabha seats)
- 6 राज्य सभा के कार्य और भूमिका
- 7 एकल संक्रमणीयमत प्रणाली (Single Transferable Vote System)
- 8 वोटिंग का क्या है फॉर्म्युला ??
- 9 एकल संक्रमणीय मत प्रणाली की प्रक्रिया
- 10 एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के लाभ
- 11 निष्कर्ष
राज्यसभा (What is Rajya Sabha)
राज्य सभा, जिसे “विधान परिषद” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संसद का उच्च सदन है। यह भारतीय संसद का स्थायी सदन है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार, 250 सदस्य होते हैं। राज्य सभा के सदस्य छह वर्षों के लिए चुने जाते हैं, और हर दो वर्षों में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। इसके 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं, और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जाते हैं, जो कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं। परन्तु वर्तमान में कुल सीटें 245 हैं, जिनमें से 233 सीटें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा निर्वाचित सदस्यों के लिए हैं और 12 सीटें राष्ट्रपति द्वारा नामांकित सदस्यों के लिए हैं।
राज्य सभा का मुख्य उद्देश्य संघीय ढांचे में राज्यों की आवाज को सुनिश्चित करना है और उन्हें संसद में प्रतिनिधित्व देना है। यह सदन विधायिका की गतिविधियों पर संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से उन मुद्दों पर जो राज्यों के हितों से संबंधित होते हैं। राज्य सभा विभिन्न विधायी, वित्तीय और प्रशासकीय विषयों पर बहस करती है और उन पर विचार-विमर्श करती है, जिससे देश के समग्र विकास में योगदान करती है।
सदस्यों की चयन प्रक्रिया (SELECTION PROCESS)
राज्यसभा सदस्यों के कार्यकाल की अवधि (Terms/period)
राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसका मतलब है कि इसे भंग नहीं किया जा सकता। यह लोक सभा से अलग है, जिसे पांच वर्षों के बाद भंग किया जा सकता है या किसी विशेष परिस्थिति में मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। राज्य सभा के स)दस्य (Rajya Sabha Members अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद पुनः निर्वाचित हो सकते हैं, यदि वे राज्य की विधानसभा या उनके संबंधित निर्वाचक मंडल द्वारा पुनः चयनित होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल और संचालन निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं में विभाजित किया जा सकता है:
- सदस्यों का कार्यकाल – राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है। यह अवधि राज्य सभा को एक स्थायी संस्था बनाती है, जिसमें नियमित अंतराल पर सदस्य बदलते रहते हैं।
- एक तिहाई सदस्यों का सेवानिवृत्त होना – हर दो वर्षों में राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि राज्य सभा में हमेशा अनुभव और नए दृष्टिकोण का मिश्रण बना रहे। इस चक्रीय व्यवस्था के तहत, हर दो वर्षों में चुनाव होते हैं और नए सदस्य चुने जाते हैं या वर्तमान सदस्य पुनर्निर्वाचित हो सकते हैं।
राज्य सभा का कार्यकाल और इसकी अद्वितीय संरचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह सदन न केवल विधायी प्रक्रियाओं में संतुलन बनाए रखता है, बल्कि देश के संघीय ढांचे को भी सुदृढ़ करता है।
राज्य सभा सदस्य की योग्यता (Eligibility)
राज्यसभा की सीटें (Rajya Sabha seats)
राज्यसभा की सीटें विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या के आधार पर आवंटित की जाती हैं। यहां राज्यवार राज्यसभा सीटों की संख्या दी गई है:
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- राज्यवार राज्यसभा सीटों की संख्या
1.आंध्र प्रदेश – 11 2.अरुणाचल प्रदेश – 1 3. असम – 7
4. बिहार -16 5. छत्तीसगढ़ – 5 6. गोवा – 1
7. गुजरात – 11 8. हरियाणा – 5 9. हिमाचल प्रदेश – 3
10. झारखंड – 6 11. कर्नाटक – 12 12. केरल – 9
13. मध्य प्रदेश – 11 14. महाराष्ट्र – 19 15. मणिपुर – 1
16. मेघालय – 1 17. मिजोरम – 1 18. नागालैंड – 1
19. ओडिशा – 10 20. पंजाब – 7 21. राजस्थान – 10
22. सिक्किम – 1 23. तमिलनाडु – 18 24. तेलंगाना – 7
25. त्रिपुरा – 1 26. उत्तर प्रदेश – 31 27. उत्तराखंड – 3
28. पश्चिम बंगाल – 16
- केंद्र शासित प्रदेशवार राज्यसभा सीटें
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- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह – 0
- चंडीगढ़ – 0
- दादर और नगर हवेली और दमन और दीव – 0
- लक्षद्वीप – 0
- दिल्ली – 3
- पुडुचेरी – 1
- जम्मू और कश्मीर – 4 (जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2019 के बाद)
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राज्य सभा के कार्य और भूमिका
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- विधायी कार्य
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- विधेयकों की समीक्षा और पारित करना – राज्य सभा विधेयकों की समीक्षा करती है और उन पर बहस करती है। यह लोक सभा द्वारा पारित विधेयकों को संशोधित करने, अस्वीकार करने या मंजूरी देने का अधिकार रखती है। हालांकि, वित्त विधेयकों पर राज्य सभा का अधिकार सीमित होता है।
- संविधान संशोधन विधेयक – संविधान में संशोधन के लिए प्रस्तावित विधेयकों पर राज्य सभा चर्चा और मतदान करती है। इस संदर्भ में इसका अधिकार लोक सभा के बराबर है।
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2. संघीय संरचना की रक्षा
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- राज्यों का प्रतिनिधित्व – राज्य सभा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। यह संघीय ढांचे को मजबूत करने और राज्यों के दृष्टिकोण को राष्ट्रीय नीतियों में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- संघ और राज्य के बीच संतुलन – राज्य सभा संघीय संरचना में राज्यों और केंद्र के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। यह उन मुद्दों पर चर्चा करती है जो राज्यों के अधिकारों और हितों से संबंधित होते हैं।
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3. कार्यकारी कार्य
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- प्रधानमंत्री और मंत्रियों की नियुक्ति: राज्य सभा के सदस्य प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं। राज्य सभा में प्रधानमंत्री का सदस्य होना भारतीय राजनीति में संतुलन और विविधता लाता है।
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कार्यपालिका की निगरानी: राज्य सभा कार्यपालिका की गतिविधियों की निगरानी करती है और सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती है। यह सदन प्रश्नकाल, शून्यकाल और विभिन्न चर्चाओं के माध्यम से सरकार की जिम्मेदारी सुनिश्चित करती है।
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4. न्यायिक कार्य
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महाभियोग प्रक्रिया – राज्य सभा, लोक सभा के साथ मिलकर, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और अन्य उच्च पदाधिकारियों के महाभियोग की प्रक्रिया में भाग लेती है।
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संसद की समितियों में भागीदारी – राज्य सभा के सदस्य विभिन्न संसदीय समितियों का हिस्सा होते हैं जो कानूनों की समीक्षा, सरकारी व्यय की जांच और अन्य महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
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5. अन्य महत्वपूर्ण कार्य
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विशेष अधिकार – राज्य सभा को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं, जैसे कि किसी राज्य की विधान परिषद की स्थापना या उन्मूलन के संबंध में प्रस्ताव पास करना।
- आर्थिक मामलों में योगदान – राज्य सभा आर्थिक मामलों, बजट और वित्त विधेयकों पर बहस करती है और सुझाव देती है। हालांकि, वित्त विधेयक को अंतिम मंजूरी देने का अधिकार केवल लोक सभा के पास होता है।
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राष्ट्रीय आपातकालीन प्रावधान -राज्य सभा राष्ट्रीय आपातकाल, वित्तीय आपातकाल या किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान विशेष भूमिका निभाती है।
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राज्य सभा का कार्यक्षेत्र व्यापक और महत्वपूर्ण है, जो भारतीय लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने और संघीय ढांचे को संतुलित रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। इसके कार्य और भूमिकाएँ सुनिश्चित करती हैं कि भारतीय संसद में विविधता, संतुलन और गहनता बनी रहे।
एकल संक्रमणीयमत प्रणाली (Single Transferable Vote System)
राज्य सभा के सदस्यों का चयन करने के लिए एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) का उपयोग किया जाता है। यह प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation) पर आधारित होती है और यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न राजनीतिक दलों और समूहों को उनकी समर्थन के आधार पर प्रतिनिधित्व मिल सके।
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली राज्य सभा के चुनाव को पारदर्शी, न्यायसंगत और प्रभावी बनाती है। यह प्रणाली विविधता और आनुपातिकता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती बनी रहती है।
वोटिंग का क्या है फॉर्म्युला ??
राज्यसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी को कितने वोटों की जरूरत है, ये पहले से तय होता है। कुल विधायकों की संख्या और राज्यसभा की सीटों की संख्या के आधार पर राज्यसभा में वोटों की संख्या तय की जाती है। हर विधायक के वोट की वैल्यू 100 होती है। राज्यसभा चुनाव के लिए एक फॉर्मूला प्रयोग में लाया जाता है। इसमें पहले कुल विधायकों की संख्या को 100 से गुणा करते हैं। इसके बाद जितनी सीटों पर चुनाव हो रहा है, उसमें एक जोड़ते हैं। फिर विधायकों की संख्या के 100 से गुणनफल को इससे भाग देते हैं। अंत में जो संख्या निकलती है, वह प्रत्याशियों को जीत के लिए वांछित वोटों संख्या होती है।
उदाहरण के लिए, जैसे – उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर चुनाव होने हैं। प्रदेश की विधानसभा में 403 सदस्य हैं। सबसे पहले 403 को 100 से गुणा करते हैं, जो 40300 होती है। इसके बाद सीटों की संख्या (10) में एक जोड़ते हैं, जो 11 होती है। अब 40300 में 11 का भाग देते हैं, जो 3663 होती है। यानी कि यहां प्रत्याशियों को जीतने के लिए 3700 के आसपास वोट चाहिए। यानी कि एक सीट के लिए प्रत्याशियों को कम से कम 37 विधायकों का समर्थन चाहिए।
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली की प्रक्रिया
इस प्रणाली के अंतर्गत, राज्य सभा के चुनाव निम्नलिखित तरीके से संपन्न होते हैं :-
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- प्राथमिकता के क्रम में रैंकिंग – राज्य सभा के उम्मीदवारों का चुनाव करने के लिए विधायिका के सदस्य अपने मत को प्राथमिकता क्रम में डालते हैं। प्रत्येक मतदाता अपने मतपत्र पर सभी उम्मीदवारों को प्राथमिकता के आधार पर क्रमबद्ध करता है, जैसे प्रथम, द्वितीय, तृतीय, आदि।
- मतपत्र भरना – मतदाता को यह ध्यान रखना होता है कि वह जितने चाहें उतने उम्मीदवारों को रैंक कर सकते हैं, लेकिन सभी उम्मीदवारों को रैंक करना अनिवार्य नहीं है।
- कोटा निर्धारण – किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम कितने वोट चाहिए, इसका निर्धारण कोटा द्वारा किया जाता है। जीतने के लिए उम्मीदवार को एक निर्धारित कोटा (निर्वाचन संख्या) प्राप्त करना होता है। यह कोटा कुल वैध मतों की संख्या को सीटों की संख्या के साथ एक जोड़कर विभाजित करके निर्धारित किया जाता है।
- मतगणना की प्रक्रिया – पहले चरण में, प्रथम प्राथमिकता के मतों की गिनती की जाती है। जो उम्मीदवार कोटा प्राप्त कर लेता है, उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है।
- अतिरिक्त मतों का पुनर्वितरण – यदि कोई उम्मीदवार कोटा से अधिक मत प्राप्त करता है, तो उसके अतिरिक्त मतों को पुनर्वितरित किया जाता है। यह पुनर्वितरण द्वितीय प्राथमिकता के आधार पर होता है, जिससे अन्य उम्मीदवारों को मौका मिलता है।
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न्यूनतम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार का बाहर होना – यदि किसी भी उम्मीदवार को कोटा प्राप्त नहीं होता, तो सबसे कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को सूची से हटा दिया जाता है। उसके मत पुनः अन्य उम्मीदवारों को उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर वितरित किए जाते हैं।
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दूसरे और तीसरे चरण की गणना – यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक सभी सीटें भर नहीं जातीं। प्रत्येक चरण में, आवश्यकतानुसार मतों का पुनर्वितरण और विलोपन किया जाता है।
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एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के लाभ
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व – यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि विभिन्न समूहों और राजनीतिक दलों को आनुपातिक रूप से प्रतिनिधित्व मिले। यह विभिन्न समूहों और विचारधाराओं को अधिक संतुलित प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।
2. समान अवसर – छोटे और बड़े दलों के उम्मीदवारों को समान अवसर मिलते हैं, जिससे चुनाव में विविधता बनी रहती है।
3. वोट की अधिकतम उपयोगिता – प्रत्येक वोट का अधिकतम उपयोग होता है, क्योंकि अतिरिक्त और निरस्त उम्मीदवारों के मत अन्य उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं।
4. पक्षपात का कम होना – यह प्रणाली अधिक निष्पक्ष है क्योंकि यह पार्टी लाइन के आधार पर विभाजन को कम करती है और उम्मीदवारों की व्यक्तिगत लोकप्रियता को महत्व देती है।
एकल संक्रमणीयमत प्रणाली राज्यसभा चुनावों में अधिक प्रतिनिधित्वात्मक और निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण विधि है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि मतदाताओं की प्राथमिकताओं का पूरा सम्मान किया जाए और विभिन्न समूहों का उचित प्रतिनिधित्व हो। इसके परिणामस्वरूप, यह भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत और संतुलित बनाती है।
निष्कर्ष
राज्यसभा भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो विधायी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संघीय ढांचे को मजबूत करता है और राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके सदस्य अपरोक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं और इसका कार्यकाल छह वर्ष का होता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता, जो इसे एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण विधायी निकाय बनाता है।
हमने Rajya Sabha Members के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की कोशिश की है, उम्मीद करते हैं आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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