Table of Contents
- 1 पढ़े गौतम बुद्ध का जीवन परिचय/जीवनी (Biography of Gautam Budha)
- 2 गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
- 3 बौदध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षेत्रीय कुल मे 563 ईसवी पूर्व हुआ। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम महामाया तथा पिता का नाम शुद्धोधन था। जन्म के सातवें दिन माता का देहांत हो जाने के कारण सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया। 16 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ का विवाह शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ जिसका बौद्ध ग्रंथों में अन्य नाम बिम्बागोपा मिलता है। सिद्धार्थ से यशोधरा को एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम राहुल था।
- 4 गृह त्याग एवं सत्य की खोज
- 5 सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। इस त्याग को बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है। गौतम बुद्ध के वैराग्य उत्पन्न करने वाले चार दृश्य निम्नलिखित थे:–
- 6 गृहत्याग के उपरान्त
- 7 ज्ञान प्राप्ति संबधि
- 8 अंतिम समय एवं मृत्यु :–
पढ़े गौतम बुद्ध का जीवन परिचय/जीवनी (Biography of Gautam Budha)
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
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परिचय
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गृह त्याग एवं सत्य की खोज
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गृहत्याग के उपरान्त
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ज्ञान प्राप्ति संबधि
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धर्म एवं धर्मप्रचार
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महात्मा बुद्ध के उपदेश एवं प्रसिद्ध अनुयायी
- अंतिम समय एवं मृत्यु परिचय
बौदध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल के तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षेत्रीय कुल मे 563 ईसवी पूर्व हुआ। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम महामाया तथा पिता का नाम शुद्धोधन था। जन्म के सातवें दिन माता का देहांत हो जाने के कारण सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया। 16 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ का विवाह शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ जिसका बौद्ध ग्रंथों में अन्य नाम बिम्बागोपा मिलता है। सिद्धार्थ से यशोधरा को एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम राहुल था।
गृह त्याग एवं सत्य की खोज
सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। इस त्याग को बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है। गौतम बुद्ध के वैराग्य उत्पन्न करने वाले चार दृश्य निम्नलिखित थे:–
- जर्जर शरीर वाला वृद्ध व्यक्ति
- 2. रोगी व्यक्ति
- 3. मृत व्यक्ति
- 4. प्रसन्न मुद्रा में सन्यासी
Note: ये चार दृश्य मज्झिम निकाय में है।
गृहत्याग के उपरान्त
- सिद्धार्थ ने अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुंडवा कर भिक्षुओं का कास्यवस्त्र धारण किया।
- सिद्धार्थ ने अपने घोड़े कंथक एवं अपने सारथी छंदक को साथ लेकर गृह त्याग किया।
- छः वर्ष तक वे ज्ञान की खोज में इधर उधर भटकते रहे। गृहत्याग के पश्चात उनके प्रथम गुरु वैशाली के समीप अलारकलाम नामक सन्यासी थे जो साख्य दर्शन के आचार्य थे। इसी कारण बौद्ध धर्म पर साख्य दर्शन का प्रभाव था।
- अलार कलाम के बाद राजगृह के उद्रक (रुद्रक) रामपुत सिद्धार्थ के गुरु बने, किंतु सिद्धार्थ उनसे संतुष्ट नहीं हुए। इसके पश्चात् बुद्ध उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किया जहाँ उन्हें कोडिन्य आदि पांच साधक मिले। सिद्धार्थ ने कठोर साधना छोड़कर निरंजना नदी के किनारे सैनानी गांव की सुजाता के हाथों भोजन (खीर) को ग्रहण किया।
ज्ञान प्राप्ति संबधि
- 6 वर्ष तक अथक परिश्रम एवं घोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की एक रात पीपल वट वृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर 49वें दिन सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी दिन वे तथागत हो गए एवं गौतम बुद्ध की नाम से प्रसिद्ध हुए।
नोट: बुद्ध जब तपस्यारत थे तब मारदेवता व कामदेव ने प्रलोभनों से उनकी समाधि को बाधित करने का प्रयास किया। परन्तु उन्होंने मार पर विजय प्राप्त की जिसे बौद्ध कला में भूमि स्पर्शमुद्रा के रूप में दिखाया गया है।
धर्म एवं धर्मप्रचार :–
- महावग्ग के अनुसारः बुद्ध ने सर्वप्रथम तपस्स एवं भल्लि नामक दो बंजारो को गया में बौद्ध धर्म का अनुयायी बनाया।
- उरुवेला से बुद्ध सारनाथ आए तथा यहाँ के ऋषिपत्नम एवं मृगदाव आश्रम में पांच ब्राह्मण सन्यासियों को पाली भाषा में प्रथम उपदेश दिया। ये पांच शिष्य थे:-
- आजं
- कोडिन्य
- अस्सजिवप्प
- महानाम
- भधिय
महात्मा बुद्ध के उपदेश एवं प्रसिद्ध अनुयायी
- महात्मा बुद्ध का प्रथम उपदेश धर्मचक्रप्रवर्तन कहलाता है।
- प्रथम उपदेश का उल्लेख संयुक्तनिकाय (सुतपिटक) में है एवं प्रथम उपदेश में ही बुद्ध ने चार आर्यसत्यों के बारे में बताया है।
- बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए। उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया।
- बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिंबसार, प्रसेंचित एवं उद्यन थे।
- बुद्ध के प्रधान शिष्य उपाली एवं आनंद थे।
- अंगुलीमाल नामक डाकू को बुद्ध ने श्रावस्ती में ही बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- वैशाली की नगरवधू आम्रपाली भी बुद्ध की शिक्षा बनी।
- में ही बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- वैशाली की नगरवधू आम्रपाली भी बुद्ध की शिक्षा बनी।
अंतिम समय एवं मृत्यु :–
- ·बुद्ध ने कुशीनगर में सुभद्र को अंतिम उपदेश देते हुए कहा कि सभी साधतिक पदार्थों का विनाश होता है। अतः प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो।
- इसी समय बुद्ध ने प्रिय शिष्य आनंद को निर्देश दिया किंग मल्लो को बुद्ध के महापरिनिर्वाण की सूचना दे।
- महात्मा बुद्ध का निधन 483 ईसवी पूर्व में 80 वर्ष की आयु में हिरण्यवती नदी के तट पर दोसाल वृक्षों के नीचे कुशीनगर में हुआ। बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है।
- महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को द्रोण नामक ब्राह्मण की अध्यक्षता में आठ लोगों ने आठ भोगो में विभाजित किया।
दोस्तों, आज के इस लेख में महात्मा बुद्ध के जीवन परिचय के माध्यम से हमने आपको भगवान गौतम बुद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कराई है। उम्मीद करते हैं कि यह लेख महात्मा बुद्ध की जीवनी आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
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