Basic Principles of Ayurveda

Basic Principles of Ayurveda के लिए यहां से पढें।

दोष धातु मल मूलं ही शरीरम् 

दोषधातुमलमूलं ही शरीरम्सु.सू. 15/3

दोष, धातु और मल को शरीर का मूल कहा गया है। दोषों में वात, पित्त एवं कफ ; रस,रक्त, मांस, मेद , अस्थि , मज्जा एवं शुक्र धातु और पुरीष, मूत्र एवं स्वेद मल शरीर के आधार तत्व होते हैं अर्थात् यह शरीर तब तक स्वस्थ एवं स्थिर रह सकता है जब तक ये तीनों (दोष,धातु एवं मल) साम्यावस्था में रहते हैं ।

जब ये अपनी विकृतावस्या को प्राप्त होते हैं तब ये शरीर का नाश करते हैं।

दोष दूषयन्तीतिदोषा

    1. जो शरीर (शरीरगत धातुओं) को दूषित करे, उसे दोष कहते हैं ।
    2. शरीर दोष तीन है।
    3. वात , पित्त एवं कफ शारीरिक दोष हैं।
    4. ये विकृत होकर देह का नाश करते हैं और अविकृत होकर देह का पालन करते हैं।
    5. मधुकोष टीका के अनुसार जिसमें प्रकृति-निर्माण की क्षमता हो और जिसमें स्वतन्त्रतापूर्वक शरीर को दूषित करने की प्रवृति हो , उसे दोष कहते हैं ।
    6. वात वायु के समान शरीर में धारक – पोषक तत्वों का विक्षेप करता है ।
    7. पित्त सूर्य के समान द्रव-द्रव्यों का शोषण एवं पाचन करता है।
    8. कफ चन्द्रमा के समान शरीर में स्नेहांश की वृद्धि करता है।

धातु

धारणात् धातवः सुश्रुत

जो शरीर को धारण करें ,उसे धातु कहते हैं।

    • शरीर का धारण एवं पोषण करने वाली रचनाएँ धातु कहलाती हैं ।
    • आचार्य डल्हण ने दधति इति धातवः कहकर धातु शब्द को परिभाषित किया है। इस प्रकार शरीर में धारण करने वाले द्रव्य ‘ धातु ‘ संज्ञा को प्राप्त करते हैं।

रसाऽसृङमांसमेदोऽस्थिमज्जाशुक्राणि धातवः.हृ.सू. 1/12

वाग्भट ने सात धातुओं का वर्णन किया है –

      1. रस
      2. रक्त
      3. मांस
      4. मेद
      5. अस्थि
      6. मज्जा
      7. शुक

मल

मलिनीकरणान्मलाः।।शा.पू.5/ 24

जो (समय से अधिक रूक जाने से) शरीर को मलिन करें, उसे मल कहते हैं।

“दोष मृज्यते शोध्यते इति मलः” तात्पर्य यह है कि जो शरीर को निर्मल एवं शोधित करे , उसे ‘मल’ कहते हैं।

    • वात , पित्त , कफ एवं धातुओं की भी गणना यत्र-तत्र मल के अन्तर्गत की गयी है इसका कारण यह है कि विषमावस्था में रहने वाले त्रिदोष एवं धातुएं शरीर को मलिन करने के साथ स्वयं भी अपचित हो सकती है।
    • मल अपनी साम्यावस्था में दोष एवं धातुओं के समान शरीर को धारण करने का भी कार्य करते हैं।
    • मल तीन प्रकार के होते हैं- मल, मूत्र एवं स्वेद ।

Conclusion

    • दोष, धातु तथा मल शरीर के मूल है।
    • मूल अर्थात् जड़
    • जड़ के बिना वृक्ष का अस्तित्व नहीं होता है। जिसके बिना उत्पत्ति , स्थिति तथा जीवन न रह सके उसे मूल कहते हैं।
    • दूसरे शब्दों में जो कारणभूत हो,उसे मूल कहते हैं।
    • दोष , धातु और मलों में से यदि एक का भी अभाव होता है तो शरीर की स्थिति नहीं रह सकती । इसलिए दोष ,धातु तथा मल शरीर के मूल हैं ।

Description of basics of Srotas  

स्रोतस्

“स्रवणात् स्त्रोतांत्सि I – .सु. 30
    • शरीर के वे सभी भाग, जहाँ स्रवण (गति) क्रिया होती है ,वे स्रोतस हैं।
    • जिससे स्राव निकलता हो, वही स्रोतस हैं।
    • स्रोत शब्द का अर्थ एक मिट्टी के घड़े के उदाहरण से समझा जा सकता है । जिस प्रकार घड़े के अन्दर से पानी रिसकर बाहर निकलता है। उसी प्रकार हमारे शरीर में cells के अन्दर पदार्थों की स्रवण क्रिया होती है।

 

मूलात् खादन्तरं देहे प्रसृतं त्वभिवाहि यत्

स्रोतस्तदिति विज्ञेयं सिराधमनि वर्जितम् ।।सु.शा.9/13

सिरा और धमनियों को छोडकर किसी मूलभूत छिद्र से देह (शरीर) के भीतर फैली जो भी वहन करने वाली प्रणाली विशेष हैं, उनको स्रोतस् कहते हैं।

स्वरूप

स्वधातुसमवर्णानि वृत्तस्थूलान्यणूनि च।

स्रोतांसि दीर्घार्ण्याकृत्या प्रतानसंदृशानि च।।.वि5/25

जिस धातु के जो स्रोत होते हैं, वे उस धातु के समान वर्ण वाले , गोल , मोटे, सूक्ष्म और आकृति में लम्बी लता के समान होते हैं। अर्थात लतायें चारों तरह फैलकर अपनी शाखा-प्रशाखाओं से व्याप्त रहती हैं। उसी प्रकार स्त्रोत भी अपनी शाखा एवं प्रशाखाओं में सारे शरीर में व्याप्त रहती हैं।

पर्याय

सिरा, धमनी, रसवाहिन्य, मार्गा , आशया, निकेत, स्थानानि शरीरच्छिद्राणि ।

संख्या

चरकानुसार – 13 है।

प्राण – उदक – अन्न – रस – रुधिर – मांस – मेद – अस्थि – मज्जा- शुक्र – मूत्र – पुरीष – स्वेद

सुश्रुतानुसार – 11 भेद हैं। 11x 2 = 22

प्राण – अन्न – उदक – रस – रक्त – मांस – मेद – मूत्र – पुरीष- शुक्र – आर्तव

 

क्रिया शरीर के पेपर -1 के Basic Principles of Ayurveda notes डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Basic Principles of Ayurveda PDF (Download)

 

हमने Basic Principles of Ayurveda के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान  करने की कोशिश की है, उम्मीद करते हैं आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।

Read more :-  kriya-sharir-notes-pdf

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!